धनबाद। …. मुख्यमंत्री के हाथों सम्मानित होने वाले डाक्टरों की लिस्ट से ऐन मौके पर डॉ संजीव कुमार प्रसाद का नाम कट गया। वैसे देखा जाये, तो जब से डॉ संजीव के नाम अवार्ड के लिए प्रस्तावित हुए थे, तभी से ही आलोचनाओं का दौर चल रहा था। सूत्र तो ये भी बताते हैं कि मामला मंत्रालय तक भी पहुंचा था, तो वहीं स्थानीय स्तर पर जनप्रतिनिधियों ने सिविल सर्जन के इस फैसले पर हैरत जतायी थी। लिहाजा किरकिरी से बचने के लिए अवार्ड के ऐन पहले सिविल सर्जन आलोक विश्वकर्मा ने भूल सुधारते हुए डॉ संजीव की जगह डॉ राजकुमार, डॉ होमा फातिमा और डॉ विकास राणा का नाम राज्य सरकार को भेजा। बुधवार की दोपहर डॉ संजीव, डॉ होमा और डॉ विकास मुख्यमंत्री के हाथों धनबाद जिले से सम्मानित हुए हैं।

सिविल सर्जन ने अपने चहेतों का नाम किया था प्रस्तावित

पिछले दिनों मुख्यमंत्री के हाथों मिलने वाले इस सम्मान के लिए जिले से डाक्टर और पारा मेडिकल स्टाफ की लिस्ट मांगी गयी थी। जिसमें सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ संजीव कुमार प्रसाद के नाम का प्रस्ताव सिविल सर्जन की तरफ से भेजा गया था। सिविल सर्जन की सिफारिश के बाद राज्य सरकार से सम्मान के लिए चयनित हुए डाक्टरों की लिस्ट में भी डॉ संजीव कुमार का नाम था। लेकिन अवार्ड सेरेमनी के ठीक पहले स्वास्थ्य विभाग ने डॉ संजीव कुमार के नाम को हटाने का फैसला लिया और उनके स्थान पर डॉ राजकुमार, डॉ होमा और विकास राणा को अवार्ड के लिए नामांकित किया गया।

इसलिए बदला गया सम्मान पाने वाले डाक्टर का नाम

जानकारी के मुताबिक जैसे ही संजीव कुमार के नाम का प्रस्ताव भेजा गया। विभाग में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गयी। मामला राजधानी तक भी पहुंचा, वहीं स्थानीय जनप्रतिनियों ने भी मामले में ऐतराज जताया। सूत्र बताते हैं कि विभाग की तरफ से सिविल सर्जन से डाक्टरों की लिस्ट पर जवाब भी पूछे गये, कोरोना काल में बेहतर काम करने वाले डाक्टरों का लिस्ट नहीं भेजने पर सवाल पूछा गया। विभाग के ऐतराज के बाद सिविल सर्जन ने संजीव कुमार का नाम हटाकर 4 जुलाई को तीन डाक्टरों के नामों की सिफारिश भेजी।

सोशल मीडिया में डाक्टर की लिस्ट पर खूब हो रही थी चर्चा

अब ऐन मौके पर संजीव कुमार का नाम क्यों कटा, डॉ राजकुमार का चयन कैसे हुआ, इसे लेकर अटकलों का दौर जारी है। कर्मचारी संगठनों के सोशल मीडिया ग्रुप में इसे लेकर काफी चर्चाएं चल रही है। हालांकि जब से मुख्यमंत्री के हाथों मिलने वाले इस सम्मान के लिए जिले से डॉ संजीव कुमार का नाम भेजा गया, तभी से सिविल सर्जन डॉ आलोक विश्वकर्मा के इस फैसले पर विभाग के लोग हैरत में थे। सवाल सबसे बड़ा तो यही था कि आखिरकर पुरस्कार के लिए चयनित स्वास्थ्यकर्मियों और चिकित्सक के उत्कृष्टता के लिए चयन का पैमाना क्या था? किस आधार पर डॉ संजीव कुमार का नाम भेजा गया था?

5 को होना था सम्मान, 4 को बदली गयी लिस्ट

दरअसल पहले जिस डॉक्टर के नाम का प्रस्ताव सम्मान के लिए भेजा गया था, उसमें सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ संजीव कुमार प्रसाद का नाम था। डाक्टर संजीव कुमार टीकाकरण के प्रभारी हैं। आंकड़े बताते हैं कि डॉ संजीव कुमार के टीकाकरण जिला प्रभारी रहते जिले में मिजिल्स रूबेला से बच्चों की मौत हुई है। धनबाद में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से चार बच्चों की मौत के बाद स्पेशल टीकाकरण का प्रोग्राम दिल्ली टीम की निगरानी में चलाना पड़ा। ऐसे में जिस विभाग पर चार बच्चों की मौत का दाग हो, उसे मुख्यमंत्री के हाथों सम्मानित कराना, क्या उन बच्चों की मौत के साथ मजाक ही था।

डा संजीव कुमार के नाम पर था ऐतराज

यही नहीं पिछले दिनों जब रांची से टीम आयी थी, तो जांच के दौरान सदर अस्पताल में इतंजामों की पोल खुल गयी थी। सदर अस्पताल के उपाधीक्षक के नाते डॉ संजीव के पास ही व्यवस्था की जिम्मेदारी थी, उस दौरान विभाग की खूब किरकिरी हुई थी। कहीं जांच मशीन आपरेट नहीं हो रहा था, तो कहीं ड्रेसिंग टेबल फटा-टूटा था। जिसके बाद जांच अधिकारियों ने कड़ी फटकार भी लगायी थी। कुछ दिन पहले धनबाद के सदर अस्पताल में कोरोना काल में दिये गये वेंटिलेटर की अव्यवस्था की खबर भी मीडिया में सुर्खियां बनी थी।

राज्य सरकार ने चिकित्सक और चिकित्साकर्मियों को सम्मान करने का कार्यक्रम इसलिए बनाती है, ताकि वो मानवीयता के लिए मिसाल बने, लेकिन क्या इसी तरह का मिसाल व आदर्श विभाग प्रतिष्ठित चिकित्सा क्षेत्र में प्रस्तुत करना चाहता था। सवाल बड़ा भी है और सोचनीय भी था। ये अच्छी बात है वक्त रहते विभाग ने भूल सुधार कर ली।

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