तो पाकिस्तान प्यासा मर जायेगा? सिंधु जल समझौता खत्म कर भारत ने पाकिस्तान को झटके में कर दिया बर्बाद, पाकिस्तान को आकाल और पानी की कमी का डबल अटैक समझिये …
So will Pakistan die of thirst? By ending the Indus Water Treaty, India has destroyed Pakistan in one go. Consider Pakistan to be facing a double attack of famine and water shortage...

Sindhu Jal Samjhauta : पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जो एक्शन लिया है उसके बाद पाकिस्तान अब प्यासा करने को मजबूर हो जाएगा। सिंधु जल समझौता रोके जाने का मतलब यह हुआ कि पाकिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी प्यासी रह जाएगी, जबकि एक बड़ा हिस्सा आकाल की चपेट में आ जाएगा। दरअसल सिंधु जल समझौते के मद्देनजर मिलने वाले पानी से ही पाकिस्तान के बड़े हिस्से की प्यास बुझती है।
सिंधु नदी बेसिन के पानी पर पाकिस्तान की बहुत ज्यादा निर्भरता होती है। अब तक समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु नदी और उसकी पश्चिमी सहायक नदियों सिंधु झेलम और चिनाब का पानी आवंटित किया जाता है। भारत सरकार के इस कड़े कदम के बाद पानी पूरी तरह से पाकिस्तान के लिए प्रतिबंधित हो जाएगी। जानकार मानते हैं कि इसका बड़ा असर पाकिस्तान में दिखेगा।
दरअसल सिंधु जल समझौता सितंबर 1960 का है। नदियों को बाँटने का ये समझौता कई युद्धों, मतभेदों और झगड़ों के बावजूद 62 सालों से अपनी जगह कायम रखा गया था। लेकिन जब मंगलवार को पानी सर से ऊपर चला गया, तो भारत ने ये कड़ा कदम आखिरकार उठा ही लिया।
भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच कई साल चली वार्ता के बाद दोनों देशों के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु-तास समझौता सितंबर 1960 में हुआ था। सिंधु जल पर हमेशा से भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद रहा है। भारत का कहना है कि 1960 की सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर मतभेद है।
सिंधु जल संधि दो देशों के बीच पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे। इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी।
सिंधु बेसिन की सभी नदियों का स्रोत भारत में है
इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर किया गया क्योंकि सिंधु बेसिन की सभी नदियों के स्रोत भारत में हैं (सिंधु और सतलुज हालांकि चीन से निकलती हैं)। समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्तें तय की गईं कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है।
तीन युद्ध हो चुके हैं लेकिन भारत ने कभी नहीं रोका पानी
पाकिस्तान को डर था कि भारत के साथ अगर युद्ध होता है तो वह पाकिस्तान में सूखे की आशंका पैदा कर सकता है। इसलिए इस संबंध में एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया गया। बाद में दोनों देशों के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन एक द्विपक्षीय तंत्र होने से सिंधु जल संधि पर किसी विवाद की नौबत नहीं आई। इसके तहत दोनों देशों के अधिकारी आंकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं, इन नदियों का एक-दूसरे के यहां जाकर निरीक्षण करते हैं तथा किसी छोटे-मोटे विवाद को आपस में ही सुलझा लेते है।
पूर्वी नदियां भारत को तो पश्चिमी पाकिस्तान के हिस्से
इस संधि के तहत तीन ‘पूर्वी नदियां’ ब्यास, रावी और सतलुज के पानी का इस्तेमाल भारत बिना किसी बाधा के कर सकता है। वहीं, तीन ‘पश्चिमी नदियां’ सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान को आवंटित की गईं हैं।
भारत हालांकि इन पश्चिमी नदियों के पानी को भी अपने इस्तेमाल के लिए रोक सकता है, लेकिन इसकी सीमा 36 लाख एकड़ फीट रखी गई है. हालांकि भारत ने अभी तक इसके पानी को रोका नहीं है। इसके अलावा भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी से 7 लाख एकड़ जमीन में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है।
भारत को इन नदियों के बहते हुए पानी से बिजली बनाने का हक़ है लेकिन पानी को रोकने या नदियों की धारा में बदलाव करने का हक़ नहीं है। पूर्वी नदियों यानी रावी, सतलुज और ब्यास का नियंत्रण भारत के हाथ में दिया गया है। भारत को इन नदियों पर प्रोजेक्ट बगैरह बनाने का हक़ हासिल है, जिन पर पाकिस्तान विरोध नहीं कर सकता है।