बहुत अनलकी थे शिबू सोरेन : तीन बार केंद्रीय मंत्री, तीन बार मुख्यमंत्री, लेकिन, कभी नहीं पूरा कर पाए कार्यकाल, शिबू सोरेन की राजनीति के 6 अधूरे अध्याय, जानिये कब-कब दिया इस्तीफा
Shibu Soren was very unlucky: Three times Union Minister, three times Chief Minister, but could never complete his term, 6 incomplete chapters of Shibu Soren's politics, know when he resigned

Shibu Soren Former Chief Minister: झारखंड की राजनीति में दिशोम गुरु शिबू सोरेन का नाम सम्मान और संघर्ष का प्रतीक रहा है। आज जब वो इस दुनिया को छोड़ गये हैं, तो उनकी ख्याति, कीर्तित्व को लोग याद कर रहे हैं। हालांकि उनकी जिंदगी के कई अधूरे पन्ने भी रहे। राजनीति के शीर्ष पर रहे शिबू सोरेन का राजनीतिक करियर हमेशा से उतार चढ़ाव वाला रहा।
आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन दुर्भाग्यवश एक भी बार वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। हर बार अलग राजनीतिक परिस्थितियों और गठबंधन की पेचीदगियों के कारण उन्हें पद से हटना पड़ा। सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं उन्हें केंद्रीय मंत्री के पद से भी इस्तीफा देना पड़ा था।
3 बार सीएम, 3 बार केंद्रीय मंत्री, 3 बार राज्यसभा
झामुमो के संस्थापक और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद शिबू सोरेन 1980 से 2019 तक दुमका से सांसद और विधायक चुने जाते रहे हैं । इस अवधि में वे दुमका लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद और जामा व जामताड़ा से एक-एक बार विधायक चुने गए । वहीं दो बार राज्यसभा के सांसद भी रहे। जबकि अलग झारखंड राज्य निर्माण के बाद 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें तीन बार केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में पहली बार उन्हें 22 मई 2004 में केंद्रीय कोयला मंत्री बनाया गया । लेकिन तीस साल पुराने जामताड़ा के एक मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किये जाने की वजह 24 जुलाई 2004 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा
इस मामले की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से शिबू सोरेन को केंद्रीय कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा देने की मांग के बाद इस्तीफा देना पड़ा। भारत सरकार के किसी केंद्रीय मंत्री द्वारा हत्या में संलिप्तता का दोषी पाए जाने का यह पहला मामला था और। दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 2006 में शिबू सोरेन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई । दिल्ली की एक अदालत ने उनकी जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दी और विस्तृत सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया और दिसंबर 2006 में सजा सुनाई गई।
मुख्यंत्री तीन बार बने, लेकिन तीनों बार इस्तीफा
पहला कार्यकाल: सबसे छोटा, सिर्फ 11 दिन का
• अवधि: 2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005
• समय: 11 दिन
2005 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। राज्यपाल ने सबसे बड़े दल के नेता के तौर पर शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए बुलाया, लेकिन वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर सके। परिणामस्वरूप, उन्हें मात्र 11 दिनों में इस्तीफा देना पड़ा।
दूसरा कार्यकाल: गठबंधन की दरार से टूटी सरकार
• अवधि: 27 अगस्त 2008 से 19 जनवरी 2009
• समय: 145 दिन (लगभग 4 महीने 23 दिन)
दूसरे कार्यकाल में उन्होंने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई। हालांकि, गठबंधन में आंतरिक खींचतान और असहमति के चलते उनकी सरकार ज़्यादा समय नहीं चल सकी और उन्हें फिर से पद छोड़ना पड़ा।
तीसरा कार्यकाल: समर्थन वापसी बना कारण
• अवधि: 30 दिसंबर 2009 से 29 मई 2010
• समय: 151 दिन (लगभग 5 महीने)
शिबू सोरेन का तीसरा कार्यकाल उनका सबसे लंबा रहा। लेकिन यह सरकार भी भाजपा के समर्थन पर टिकी थी। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के विवाद के बाद भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और एक बार फिर शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
राजनीति के पथ पर संघर्ष और सम्मान
शिबू सोरेन के तीनों मुख्यमंत्री कार्यकाल भले ही अधूरे रहे, लेकिन उन्होंने झारखंड के निर्माण और आदिवासी हकों की लड़ाई में जो योगदान दिया, वह उन्हें हमेशा एक “दिशोम गुरु” के रूप में अमर बनाए रखेगा। उनका जीवन एक ऐसे नेता की कहानी है जिसने संघर्षों को ओढ़ा और जन-आंदोलन की ताकत से सत्ता तक का सफर तय किया।