झारखंड : भाजपा में सत्ता की हलचल…रघुवर दास झारखंड भाजपा के नए अध्यक्ष बनेंगे, बाबूलाल मरांडी का पत्ता कटेगा?

Jharkhand: Power stir in BJP... Raghuvar Das will become the new president of Jharkhand BJP, will Babulal Marandi be dropped?

झारखंड में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की सक्रियता और फिर दुमका में उनकी बाबूलाल मरांडी से मुलाकात के बाद झारखंड के सियासी गलियारों में कई सवाल तैरने लगे हैं

क्या, भाजपा के इन दो दिग्गज नेताओं के बीच शीतयुद्ध समाप्त हो गया है. क्या, झारखंड के इन 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों में सुलह हो गई है. प्रदेश की उपराजधानी में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष की संभावित भावी प्रदेश अध्यक्ष से मुलाकात स्वाभाविक थी या झारखंड की सियासत में किसी नये राजनीतिक कहानी की पटकथा तैयार की जा रही है.

ये आम चर्चा है कि जब रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर वापस झारखंड लौट आये तो भारतीय जनता पार्टी का एक खेमा असहज था. बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास के बीच अंदरुनी खींचतान छिपी नहीं है. रघुवर दास के वापस झारखंड लौटने के बाद बाबूलाल मरांडी से उनकी द्विपक्षीय मुलाकात की शायद ही कोई तस्वीर इससे पहले आई थी. हां! दोनों पार्टी के अलग-अलग कार्यक्रमों में जरूर नजर आये लेकिन पहली बार दोनों ने व्यक्तिगत तौर पर आपस में मुलाकात की है.

सवाल है कि इस मुलाकात की भूमिका कैसे तैयार हुई. वैसे कहने वाले कहेंगे कि दुमका परिसदन में दोनों नेता ठहरे थे तो स्वाभाविक रूप से उनका मिलना तय हुआ लेकिन सियासी जानकारों को ये मुलाकात इतनी सहज नहीं लगती.

बाबूलाल मरांडी कर चुके हैं इस्तीफे की पेशकश
दरअसल, बाबूलाल मरांडी पिछले साल विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं. जनवरी 2025 में ही प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा था कि हम बहुत जल्द नये प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कर लेंगे लेकिन, जून खत्म होने को और बहुत जल्द जुलाई का प्रवेश हो जायेगा.

खबरें हैं कि 10 जुलाई को जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का रांची दौरा है उसी के आसपास झारखंड के नये प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान भी हो जायेगा.

अब, बाबूलाल मरांडी की रघुवर दास से इस मुलाकात के बाद कयास लग रहे हैं कि क्या रघुवर दास झारखंड भाजपा की कमान संभालने जा रहे हैं.

दरअसल, आदिवासी चेहरे के रूप में भाजपा बाबूलाल मरांडी को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना चुकी है और अब झारखंड की सबसे बड़ी आबादी यानी ओबीसी को प्रतिनिधित्व देने के खयाल से रघुवर दास को कमान सौंपी जा सकती है.

सियासी जानकारों का मानना है कि रघुवर दास जैसा बड़े कद का नेता राज्यपाल का पद छोड़कर सक्रिय राजनीति में यूं नहीं लौटेगा. जाहिर है कि बाबूलाल मरांडी के बाद अब रघुवर दास ही भाजपा के नये अध्यक्ष हो सकते हैं.

क्या रघुवर दास बनेंगे झारखंड भाजपा के अध्यक्ष
सियासी जानकारों ने इन संभावनाओं के पीछे कुछ तर्क दिये हैं. दरअसल, अभी हाल ही में बाबूलाल मरांडी ने दिल्ली का दौरा किया था. वह गृहमंत्री अमित शाह से मिले भी थे. बताया जा रहा है कि जिस दिन बाबूलाल मरांडी ने अमित शाह से मुलाकात की उसी दिन रघवुर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को राज्य में पेसा कानून लागू करने की मांग करते हुए चिट्ठी लिखी.

रघुवर दास अपनी वापसी के बाद से ही झारखंड की सियासत में प्रो-एक्टिव हैं. उन्होंने होली और रामनवमी के मौके पर भाजपा की चिर-परिचित हिंदूत्ववादी राजनीति को लेकर आक्रामकता दिखाई तो अब आदिवासी मामलों पर काफी मुखरता से हेमंत सोरेन सरकार पर चोट कर रहे हैं. पेसा कानून को लेकर उन्होंने मोर्चा खोल रखा है.

उन्होंने इसे आदिवासी हितों के लिए सबसे जरूरी बताया और इसी बीच उनकी एक तस्वीर भी सामने आई जो काफी कुछ कहती है.

साहिबगंज से रांची वापसी के क्रम में झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडेय सिंह से रघुवर दास ने ट्रेन में ही मुलाकात की इस मुलाकात की तस्वीर सोशल मीडिया में साझा करते हुए लिखा कि पेसा कानून को लेकर चर्चा हुई है.

रघुवर दास की सक्रियता से प्रभावित है बीजेपी नेतृत्व
सियासी जानकारों का ऐसा कहना है कि रघुवर दास की सक्रियता से बीजेपी आलाकमान काफी प्रभावित है और अमित शाह ने बाबूलाल मरांडी से कहा है कि रघुवर दास की इस सक्रियता को संगठन के साथ जोड़ लिया जाये. यही संगठन और पार्टी के लिए हितकारी होगा.

कहा जा रहा है कि अमित शाह ने ही बाबूलाल मरांडी को इस बात के लिए राजी किया कि वह रघुवर दास से मुलाकात करें और कार्यकर्ताओं तक यह संदेश पहुंचाएं कि रघुवर दास जिस योजना या रणनीति के तहत हेमंत सोरेन सरकार पर हमलावर हैं, उसके साथ कदमताल मिलाया जाये.

दरअसल, जब से रघुवर दास लौटे हैं तब से विभिन्न मुद्दों पर वह अकेले ही नजर आये हैं. एकाध कार्यक्रमों को छोड़ दिया जाये तो रघुवर दास अकेले ही घूमते नजर आ रहे हैं और उनके समय के पुराने कार्यकर्ता ही इर्द-गिर्द नजर आते हैं. दूसरे खेमे की निष्क्रियता साफ नजर आती है लेकिन, अब बाबूलाल मरांडी से उनकी मुलाकात इस बात की तस्दीक करती है कि रघुवर दास और झारखंड भाजपा का स्वर एक ही होगा. हेमंत सरकार पर आक्रामक हमला होता रहेगा.

गरम दल के साथ नरम दल को मिलाकर आगे बढ़ेंगे
दरअसल, भाजपा हाईकमान को ऐसा लगता है कि बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन ये सभी लोग नरम दल के नेता हैं. तथ्यों को स्पष्ट ढंग से कहते तो हैं लेकिन इनसे जनता उद्वेलित नहीं होती लेकिन, रघवुर दास गरम दल के हैं.

सियासत में दोनों ही दलों की जरूरत है और झारखंड के संदर्भ में अब समय आ गया है कि सदन के भीतर हेमंत सोरेन सरकार को बाबूलाल मरांडी तथ्यात्मक तर्कों के साथ घेरें और सदन के बाहर सड़क पर रघुवर दास विभिन्न मुद्दों पर आक्रामक हमला जारी रखें.

बाबूलाल मरांडी आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और इधर, रघुवर दास 45 फीसदी ओबीसी आबादी तक संगठन को पहुंचाएंगे.

रघुवर दास की वापसी से एक खेमा नाखुश था!
झारखंड भाजपा में आमतौर पर ऐसा समझा जाता था कि रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी एक-दूसरे के साथ उतने सहज नहीं हैं. जब रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर झारखंड लौटे तो विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार पर कड़वी मगर सच्ची टिप्पणी की.

रघुवर दास ने कहा कि हम स्थिति भांपने में नाकामयाब रहे और अति-आत्मविश्वास का शिकार बने. चुनाव बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में लड़ा गया था लेकिन, स्थिति ऐसी थी कि हिमंता बिस्वा सरमा ही हावी रहे. संगठन बिखरा-बिखरा सा लगा और कार्यकर्ताओं में अनुशासन का अभाव भी दिखा.

रघुवर दास न केवल कुशल संगठनकर्ता माने जाते हैं बल्कि अनुशासनप्रिय भी हैं और ऐसे में शीर्ष नेतृत्व नें भी सोचा कि समय है कि बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास साथ मिलकर कदम बढ़ाएं न कि अलग-अलग.

बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास की ताजा मुलाकात को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है.

झारखंड में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं रघुवर दास
रघुवर दास की हालिया गतिविधि इसी कोशिश का नतीजा लग रही है. अभी रघुवर दास संताल परगना के दौरे पर थे. उन्होंने उन तमाम विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया जहां भाजपा लंबे समय से कमजोर है.

दुमका, शिकारीपाड़ा, लिट्टीपाड़ा, राजमहल, बोरियो सहित अन्य विधानसभा क्षेत्रों का उन्होंने दौरा किया. वह जामताड़ा, जामा भी गये. उनकी तमाम गतिविधियां भावी प्रदेश अध्यक्ष वाली लग रही है.

देखना केवल इतना है कि बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास की ये मुलाकात झारखंड के सियासी भविष्य पर क्या रंग लाती है.

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