झारखंड : “एसपी को किया फोन, बोली – शादी नहीं करनी, पढ़ना चाहती हूं”, IPS रीष्मा ने बढ़ाया हाथ, तो पास कर ली 11वीं, अब बनना चाहती है जज

Jharkhand: "Called SP, said - I don't want to get married, I want to study", IPS Rishma extended her hand, passed 11th, now wants to become a judge

IPS Rishma rameshan। IPS रीष्मा रमेशन की एक संवेदनशील पहल एक बिटिया की कामयाबी की नयी गाथा लिख रही है। एसपी से पढ़ाई की गुहार लगाने वाली बच्ची ने अच्छे नंबरों के साथ 11वीं की परीक्षा पास कर ली है। कभी नक्सलियों के साए में डर के साये में जीने वाली एक बच्ची ने आज उम्मीद, हिम्मत और बदलाव की नई इबारत लिख दी है।

 

पलामू के अतिनक्सल प्रभावित गांव रंगेया की रहने वाली एक किशोरी ने पढ़ाई के लिए पुलिस अधीक्षक से मदद की गुहार लगाई, और अब उसी मदद से उसने 11वीं कक्षा पास कर ली है। बच्ची ने 58.8 प्रतिशत अंक हासिल कर न सिर्फ अपने सपनों की पहली सीढ़ी पार की, बल्कि यह भी साबित किया है कि अगर संकल्प हो, तो हालात रास्ता नहीं रोक सकते। अब पलामू पुलिस ने भरोसा दिलाया है कि वह बच्ची की 12वीं की पढ़ाई और आगे की शिक्षा में भी मदद करेगी।

 

“मैं जज बनना चाहती हूं, शादी नहीं करना…”

कुछ महीने पहले, इस बच्ची ने पलामू की तेजतर्रार महिला एसपी रीष्मा रमेशन को फोन कर एक भावुक अपील की थी। उसने कहा था, “मैं पढ़ना चाहती हूं, जज बनना चाहती हूं, लेकिन मेरे परिवार वाले मेरी शादी करवाना चाहते हैं।”

इस कॉल के बाद एसपी ने तुरंत संज्ञान लिया। मनातू थाना प्रभारी निर्मल उरांव और महिला थाना प्रभारी रूप बाखला की अगुवाई में पुलिस टीम बच्ची के गांव पहुंची। परिजनों की काउंसलिंग की गई और बच्ची की इच्छा को पूरा करने के लिए पुलिस ने आगे बढ़कर पढ़ाई का पूरा जिम्मा उठाया।

 

जिस स्कूल को नक्सलियों ने उड़ाया था, वहीं से मिली उड़ान

बच्ची का चक प्लस टू हाई स्कूल में नामांकन करवाया गया। यही वो स्कूल है, जिसे नक्सलियों ने 2006-07 और 2008-09 में विस्फोट से उड़ाया था। उसी खंडहर से आज उम्मीद की एक नई इमारत खड़ी हो रही है।पलामू पुलिस ने उसे स्टडी किट, किताबें और मानसिक सहारा दिया। बच्ची ने आर्ट्स विषय से 11वीं पास की और अब वह पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही है।

 

नक्सल इलाकों से निकल रही है उजाले की राह” — SP रीष्मा रमेशन

इस प्रेरणादायक घटना पर एसपी रीष्मा रमेशन ने कहा,

“यह हमारे लिए गर्व की बात है कि बच्ची ने हिम्मत दिखाई। हम उसकी आगे की पढ़ाई में भी मदद करेंगे। ऐसे कई बच्चे हैं जो नक्सल क्षेत्रों में रहते हुए भी मुख्यधारा में आना चाहते हैं। पुलिस की यह पहल आगे भी जारी रहेगी। मैं खुद जल्द उस बच्ची से मिलूंगी और उसका हौसला बढ़ाऊंगी।”

 

जिस रंगेया गांव से यह बच्ची आती है, वह इलाका नक्सल गतिविधियों और अवैध अफीम की खेती के लिए कुख्यात रहा है। बिहार के गया जिले से सटे इस क्षेत्र में शिक्षा की पहुंच ना के बराबर रही है। ऐसे में एक किशोरी का खुद फोन कर मदद मांगना और फिर सफलता की राह पर चल पड़ना — यह न सिर्फ उस बच्ची की जीत है, बल्कि समाज और व्यवस्था की भी बड़ी जीत है।

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