रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के राजनीतिक भविष्य पर फैसला आना अभी बाकी है। इधर, दुमका विधायक बसंत सोरेन के मामले में इलेक्शन कमीशन ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अगर बसंत सोरेन की सदस्यता खतरे में पड़ती है तो झामुमो के लिए यह बड़ा झटका होगा। बसंत सोरेन की लीगल रिप्रजेंटेटिव एसके मेद्रीरता ने बताया कि  सुप्रीम कोर्ट का 1952 से लेकर अब तक यही फैसला रहा है। जिसके मुताबिक चुनाव आयोग और गवर्नर की जूरिडक्शन सिर्फ वहीं है जहां पर डिसक्वालीफिकेशन एमएलए बनने की बात हो। अगर पहले से कोई डिसक्वालीफिकेशन चल रहा है और बाद में भी चल रहा है तो उसके लिए इलेक्शन पिटिशन पर सुनवाई होती है।  इस तरह मामले को सुनने का क्षेत्राधिकार किसे है वह तय होना चाहिए।  चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।

भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव आयोग से बसंत सोरेन को अयोग्य घोषित करने की मांग की है। चुनाव आयोग लंबे समय से इस मामले की सुनवाई कर रहा है। बसंत सोरेन ने चुनाव आयोग को इस संबंध में अपना जवाब भी भेज दिया है। सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखने से सस्पेंस बढ़ गया है, लिहाजा अब इलेक्शन कमीशन के फैसले पर हर किसी की नजर है। यह मामला भी हेमंत सोरेन के मामले की तरह ही है लेकिन अंतर सिर्फ इतना है की बसंत सोरेन ने खनन लीज की जानकारी चुनाव आयोग में चुनाव के समय शपथ पत्र में दी है या नहीं दी है। बसंत सोरेन का कहना है कि उन्होंने जानकारी नहीं छुपाई है और भारतीय जनता पार्टी का कहना है की बसंत सोरेन ने चुनावी शपथ पत्र में इसकी जानकारी नहीं दी है। दोनों में कौन सच बोल रहा है इसका फैसला चुनाव आयोग को करना है। अगर बसंत सोरेन का दावा गलत साबित होगा तो चुनाव आयोग उनकी सदस्यता रद्द कर सकता है। संभव है कि चुनाव आयोग उनके चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लगा दे।

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