Nirjala Ekadashi 2025 : भीमसेनी एकादशी की पौराणिक कथा…जानें निर्जला एकादशी के नाम पड़ने की कहानी और इसका महत्व

Nirjala Ekadashi 2025 : फीचर डेस्क : निर्जला एकादशी, सनातन धर्म में सबसे कठिन और पुण्यदायी व्रतों में से एक माना जाता है। इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन जल और अन्न का पूर्ण त्याग किया जाता है, जिससे इसका नाम ‘निर्जला’ पड़ा।

क्यों कहा जाता है इसे भीमसेनी एकादशी, जानें पौराणिक कथा

पद्म पुराण के उत्तरखंड में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार पांडवों ने महर्षि वेदव्यास से पूछा कि एकादशी व्रत का क्या महत्व है और इसका पालन कैसे करें। वेदव्यास जी ने बताया कि वर्ष में 24 एकादशी आती हैं और प्रत्येक व्रत से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।

यह सुनकर भीमसेन ने कहा कि वे अत्यंत बलशाली हैं, लेकिन भूखे रहना उनके लिए अत्यंत कठिन है। उन्होंने निवेदन किया कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे वे केवल एक दिन व्रत रखकर वर्ष भर की सभी एकादशी का पुण्य प्राप्त कर सकें? वेदव्यास जी ने उन्हें सलाह दी कि यदि वे केवल ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को पूर्ण निर्जला व्रत रखें और भगवान विष्णु की पूजा करें, तो वे समस्त एकादशी के समान फल प्राप्त कर सकते हैं।

भीमसेन ने वेदव्यास जी के निर्देशों का पालन करते हुए निर्जला व्रत रखा। उन्होंने पूरे दिन अन्न और जल ग्रहण नहीं किया और भगवान विष्णु की पूजा की। इस कठिन व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अक्षय पुण्य और मोक्ष का आशीर्वाद दिया। तभी से यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

निर्जला एकादशी का महत्व

यह व्रत साल भर की सभी एकादशी का पुण्य प्रदान करता है।

व्रती को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यह व्रत शारीरिक और मानसिक तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का यह सर्वोत्तम अवसर होता है।

Nirjala Ekadashi Pujan Vidhi : पूजन विधि

स्नान और संकल्प

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा जल या स्वच्छ जल से स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।

पूजन की तैयारी

घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

कलश स्थापना

पीले कपड़े में मौली (रक्षासूत्र) बांधकर तांबे या पीतल के कलश में जल, सुपारी, अक्षत, सिक्का और आम के पत्ते डालें।

विष्णु पूजन सामग्री

भगवान को पीले फूल, तुलसी पत्र, चंदन, धूप, दीप, फल और मिठाई अर्पित करें।

मंत्र और पाठ

‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

व्रत नियम

इस दिन अन्न और जल दोनों का पूर्ण परहेज करें। अति आवश्यक होने पर तुलसी डालकर जल की एक बूंद ही ग्रहण करें (वैकल्पिक स्थिति में)।

 

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