नक्सली बनी मंत्री: पुलिस के लिए मोस्ट वांटेड रही महिला नक्सली बनी मंत्री, बड़ी दिलचस्प है मंत्री सीताक्का की कहानी, पति और भाई को एनकाउंटर में खोया

हैदराबाद। तेलंगाना में एक महिला नक्सली ने विधायक का चुनाव जीता है। कभी नक्सली रहते जो महिला पुलिस के लिए मोस्ट वांटेड थी, अब उसी महिला को पुलिस सलाम ठोकती है और सुरक्षा देती थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं कि सीतक्का की…जो तेलंगाना सरकार में मंत्री बनायी गयी है। 80 से दशक में सरकार की नाक में दम करने वाली सीतक्का ने एक मुठभेड़ में पति और भाई को खो दिया। इस मुठभेड़ ने मन बदल गया और सीतक्का ने आत्मसमर्पण कर दिया। मुख्य धारा में वापस लौटने के बाद उन्होंने शिक्षा को हथियार बनाया और आज मुगुलू विधानसभा सीट से विधायक चुनी जाने के बाद तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार में मंत्री बन गई हैं।

तेलंगाना में रेवंत रेड्डी ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है. उनके अलावा 11 मंत्रियों ने भी शपथ ली, इनमें विधायक डी. अनसूया सीताक्का भी हैं। सीताक्का ने नकस्ली से लेकर वकील, विधायक और अब तेलंगाना की मंत्री बनने का सफर पूरा किया है. सीताक्का ने मुलुग सीट पर जीत दर्ज की। तेलंगाना की मंत्री बनी डी. अनसूया सीताक्का की जीवन आसान नहीं रहा है. कोया जनजाति से आने वाली अनसूया सीताक्का कम उम्र में ही माओवादी आंदोलन में शामिल हो गई थी।

छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे तेलंगाना की मुलुगू विधानसभा की विधायक सीतक्का उर्फ दानसारी अनुसूइया ने जिस तरह से जिंदगी की जंग लड़ी, वह काबिले तारीफ है। कभी नक्सली थी और अब मंत्री बन चुकी सीतक्का की कहानी खास है। 80 और 90 के दशक में तेलंगाना के जंगलों की खाक छानने वाली सीतक्का कोया जनजाति से आती हैं। उनकी खूबियों को जानने के बाद कांग्रेस ने उन्हें मुलुगू विस से अपना प्रत्याशी बनाया। परिणाम आए तो सोनिया गांधी ने भी उन्हें गले लगाने से परहेज नहीं किया। सीतक्का के जीवन से जुड़ी कहानी के उतार-चढ़ाव के बीच उनकी जीत को लोग लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत मान रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि इस सोच का विस्तार पड़ोसी सूबे से छत्तीसगढ़ तक हो ताकि यहां भी शांति बहाली की दिशा में प्रयत्न को आधार मिल सके।

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सीतक्का ने न केवल मेन स्ट्रीम में वापसी की, बल्कि खुद को सबल बनाने के लिए उस्मानिया यूनिवर्सिटी से 2022 में पॉलीटीकल साइंस में पीएचडी की। लॉ की पढ़ाई करते हुए सीतक्का ने वकालत भी की। उनकी काबीलियत को पहचानते हुए रेवंत रेड्डी ने अपने मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी है। बीते गुरुवार को उन्होंने मंत्री पद की शपथ ले ली। इस दौरान उनके समर्थक काफी संख्या में मौजूद रहे। शपथ ग्रहण के दौरान उठ रहे शोर से उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लग रहा था। दरअसल कोरोना संकटकाल के दौर में उन्होंने जिस तरह से लोगों की सेवा की, वह उनकी लोकप्रियता का आधार बताया जा रहा है।

2004 में लड़ा पहला चुनाव

बाद में सीताक्का तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) में शामिल हो गईं. साल 2004 में उन्होंने मुलुग सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. पांच साल बाद 2009 के विधानसभा चुनाव में सीताक्का ने मुलुग सीट पर जीत दर्ज कीं और विधायक बनी. 2014 के विधानसभा चुनाव में वह तीसरे नंबर पर रहीं.

2017 में कांग्रेस में शामिल हुई

सीताक्का साल 2017 में कांग्रेस में शामिल हुईं और 2018 के विधानसभा चुनाव में बीआरएस की आंधी के बावजूद जीत दर्ज कीं. कोविड-19 महामारी के दौरान उनके निर्वाचन क्षेत्र के अलावा दूर-दूर तक उनके काम को सराहा गया था.

2022 में पूरी की पीएचडी

सीताक्का ने पिछले साल 2022 में उस्मानिया विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में पीएचडी पूरी की. उस समय उन्होंने एक्स पर कहा था, बचपन में मैंने कभी सोचा नहीं था कि नक्सली बनूंगी. जब मैं नक्सली थी तो कभी नहीं सोचा था कि वकील बनूंगी, जब वकील हुई तो कभी नहीं सोचा था कि मैं विधायक बनूंगी. जब विधायक बन गई तो कभी नहीं सोचा था कि पीएचडी कर पाऊंगी.

नक्सली से वकील और विधायक के बाद मंत्री बनने तक का सफर पूरा कर चुकी सीतक्का सामान्य जीवन में बेहद सरल नजर आती हैं। अतीत का जीवन वे भुला चुकी हैं और अब नए सिरे से आगाज कर लोगों को यह संकेत दे रही हैं कि हिंसा से किसी मुकाम तक नहीं पहुंचा जा सकता। मन बदलने के साथ ही उन्होंने जिस तरह से पथ बदला, वह छत्तीसगढ़ में सक्रिय नक्सलपंथियों के लिए सबक साबित हो सकता है। उनके जीवन में आए उतार-चढ़ाव को एक सबक के रुप में लिया जाना चाहिए।

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