“मुस्लिम ठेकेदारों को अब सरकारी टेंडर्स में मिलेगा 4% आरक्षण” बाबूलाल मरांडी का कड़ा बयान, बोले, झारखंड में भी इसी तर्ज पर…

“Muslim contractors will now get 4% reservation in government tenders” Babulal Marandi's strong statement, said, the same will be done in Jharkhand too...

रांची। मुस्लिम कॉन्ट्रैक्टर्स में सरकारी टेंडर में अब 4 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया गया है। कर्नाटक सरकार ने ये अनूठा फैसला लिया है। इस फैसले पर पूरे देश में प्रतिक्रिया देखी जा रही है। झारखंड में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इसे लेकर निशाना साधा है।

 

कर्नाटक सरकार ने लिया है फैसला 

 

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को कैबिनेट मीटिंग में कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योर्मेंट (KTPP) एक्ट में बदलाव का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को मंजूर भी कर लिया गया है। मंत्रिमंडल ने कर्नाटक ग्राम स्वराज और पंचायत राज (संशोधन) विधेयक को भी मंजूरी दे दी है। कांग्रेस के इस फैसले से राजनीतिक तूफान खड़ हो गया है। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। बीजेपी का कहना है कि राहुल गांधी ने राज्य मंत्रिमंडल के निर्णय को प्रभावित किया है।

 

 

बाबूलाल मरांडी ने साधा निशाना 

 

इस फैसले पर झारखंड विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने निशाना साधा है। उनहोंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा है कि, देश के संसाधनों पर मुसलमानों को पहला हक़ देने की बात करने वाली कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकारी टेंडर में मुसलमानों को 4% आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित किया है। आने वाले समय में यह केवल ठेकेदारी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कांग्रेस शासित राज्यों में धर्म के आधार पर संसाधनों के बंटवारे की दिशा भी तय करेगा।

 

 

मरांडी ने किया आगाह 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान देश को आगाह किया थी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई, तो महिलाओं की मंगलसूत्र तक छिन लेगी। आदरणीय प्रधानमंत्री जी के सशक्त नेतृत्व और अपार जनसमर्थन के कारण तब कांग्रेस अपने नापाक मंसूबे में सफल नहीं हो पाई।

 

 

लेकिन अब कांग्रेस शासित राज्यों में संसाधनों पर मुसलमानों को पहला हक़ दिया जाने लगा है… कांग्रेस-झामुमो शासित झारखंड में भी इसी तर्ज पर सरकारी टेंडरों की खास वर्गों के बीच बंदरबांट की जा रही है। अघोषित रूप से वोटबैंक के आधार पर संविदाएं बांटी जा रही हैं, और बहुसंख्यक समाज के संवेदकों को हाशिये पर धकेला जा रहा है।

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