मोगा सेक्स स्कैंडल मामला: SSP, SP और दो इंस्पेक्टर पर जानिये अब कब आयेगा फैसला, जानिये क्या था पूरा स्कैंडल, जिसने देश में मचा दी थी खलबली
Moga sex scandal case: Know when the verdict will come on SSP, SP and two inspectors, know what the whole scandal was, which created a stir in the country

Moga Sex Scandal : देश के सबसे चर्चित सेक्स स्कैंडल में से एक “मोगा सेक्स स्कैंडल” पर अब सोमवार को फैसला आयेगा। देश को हिलाकर रख देने वाले इस स्कैंडल में SSP, SP और दो इंस्पेक्टरों को कोर्ट ने दोषी पाया है। पंजाब के मोगा सेक्स स्कैंडल में अब 7 अप्रैल को फैसला सुनाया जायेगा। स्पेशल कोर्ट ने 18 साल पुराने इस मामले में विशेष न्यायाधीश राकेश गुप्ता ने सभी को भ्रष्टाचार और वसूली का दोषी माना था।
कोर्ट ने जिन अफसरों को दोषी ठहराया है, उसमें मोगा के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) देविंदर सिंह गरचा, मोगा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय) परमदीप सिंह संधू, मोगा के तत्कालीन स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) रमन कुमार और मोगा के तत्कालीन एसएचओ पुलिस स्टेशन सिटी मोगा इंस्पेक्टर अमरजीत सिंह शामिल हैं।
कोर्ट ने देविंदर सिंह गरचा और पीएस संधू को भ्रष्टाचार निवारण (पीसी) अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के साथ धारा 13(2) के तहत दोषी पाया। वहीं रमन कुमार और अमरजीत सिंह को पीसी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 384 (जबरन वसूली) के समान प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया है।
अमरजीत सिंह को धारा 384 के साथ धारा 511 आईपीसी के तहत भी दोषी ठहराया गया है। आरोपी बरजिंदर सिंह उर्फ मक्खन और सुखराज सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है।
क्या है मोगा सेक्स स्कैंडल
यह मामला सबसे पहले CBI ने दर्ज किया था। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 11 दिसंबर, 2007 को एक आदेश दिया था। इस आदेश में हाई कोर्ट ने CBI को जांच करने का जिम्मा सौंपा था। कोर्ट को डर था कि राज्य पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर पाएगी। कोर्ट ने कहा था कि पुलिस पर राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव हो सकता है।
शुरुआत में यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद सीबीआई ने दर्ज किया था. 11 दिसंबर 2007 के आदेशानुसार जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. अदालत ने राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव का हवाला देते हुए राज्य पुलिस की निष्पक्ष जांच करने की क्षमता पर सवाल उठाया था. इसके बाद सीबीआई ने पीसी एक्ट 1988 की धारा 7, 13(2) और आईपीसी की धारा 384, 211 और 120B के तहत एफआईआर दर्ज की थी।
जांच के दौरान पता चला कि दविंदर सिंह गरचा, परमदीप सिंह संधू, अमरजीत सिंह और रमन कुमार ने सरकारी अधिकारी होने के नाते अकाली नेता तोता सिंह के बेटे बरजिंदर सिंह उर्फ मखन और अन्य लोगों के साथ मिलकर अवैध आर्थिक लाभ लेने की साजिश रची. उन्होंने कथित तौर पर झूठी एफआईआर दर्ज करवाईं और निर्दोष लोगों को केस से बाहर निकालने के लिए रिश्वत ली. इस साजिश में झूठे हलफनामे का भी इस्तेमाल किया गया।