धनबाद। स्वास्थ्य विभाग में गैर जिम्मेदार लोगों की कमी नहीं है। जिन कामों के लिए पद पर कर्मियों को लगाया गया है उनकी गैर जिम्मेदारी से पूरा स्वास्थ्य महकमा शर्मिंदगी झेल रहा है। कहने को तो स्वास्थ्य विभाग ने कई प्रबंधक नियुक्त किए है परंतु ऐसा प्रबंधन न आजतक आपने कहीं देखा होगा न कहीं सुना होगा। ऐसे में उनके प्रबंधन की योग्यता पर सवाल उठना स्वाभाविक हैं। जी हां ,हम बात कर रहे है सीएचसी गोविंदपुर की। जो हर दिन किसी न किसी कारण से चर्चा में रहते है, चाहे वो सरकारी अस्पताल की जमीन पर सामुदायिक शौचालय निर्माण का मामला हो या संस्थान में नियुक्त प्रखंड कार्यक्रम प्रबंधक के अक्षमता का…।

CHC गोविंदपुर में बेहतर कार्य के उद्देश्य से प्रखंड कार्यक्रम प्रबंधक की स्थानांतरण किया गया। गोविंदपुर में बलियापुर के बीपीएम प्रमोद कुमार की प्रतिनियुक्ति की गई और बलियापुर में गोविंदपुर के बीपीएम प्रदीप सेन की। अपने अपने संस्थान में इन दोनों बीपीएम की लापरवाही और लगातार ही रही शिकायत के बाद जिले के सिविल सर्जन द्वारा ये कारवाई की गई थी। परंतु इसके बावजूद इनकी अक्षमता और लापरवाही के कारनामे इन स्थानांतरण के बाद भी बदस्तूर जारी है।

CHC गोविंदपुर का कराया बंटाधार

विभाग में चल रहे सारे कार्यक्रम के बेहतर प्रबंधन और प्लान की जिम्मेवारी प्रारंभिक रूप में बीपीएम की है। परंतु हाल के दिनों सरकार द्वारा MR टीकाकरण की योजना बनाई जा रहीं है। जिसके माइक्रो प्लान पर विभाग का फोकस है, इस काम के लिए दिल्ली की टीम भी दौरा कर चुकी है। परंतु बीपीएम न तो समय पर माइक्रो प्लान बना पाए , न ही इससे संबंधित कोई ठोस जवाब उच्च अधिकारी को दे पाए। मसलन इसकी शिकायत कर दी गई।

प्रभारी, BAM, BPM का वेतन बंद

समय पर उच्चाधिकारी के निर्देश का पालन नहीं करने और माइक्रो प्लान तैयार नहीं करने के कारण बीपीएम ने संस्थान की खूब किरकिरी कराई, निरीक्षण टीम की शिकायत पर सिविल सर्जन डा आलोक विश्वकर्मा ने संस्थान के प्रभारी, BAM और BPM का वेतन बंद करने का निर्देश जारी कर दिया है।

सिविल सर्जन भी कई बार कर चुके है दौरा

जिले के सिविल सर्जन कई बार सीएचसी गोविंदपुर का दौरा कर चुके है। पिछले वर्ष इस क्षेत्र में मिजिल्स के कारण की बच्चों की जान चली गई थी जिसकी गूंज दिल्ली तक पहुंच गई थी और वहां की टीम भी दौरा करने पहुंची थी। उसके वावजूद बीपीएम प्रमोद कुमार की लापरवाही कम होने का नाम नहीं ले रही। किसी भी कार्यक्रम की योजना बनाने की जिम्मेवारी बीपीएम की होती है परंतु जब यही काम समय से नहीं कर पाने वाले कर्मी अपनी अक्षमता का परिचय विभाग को देने लगे तो बीपीएम के औचित्य पर सवाल उठना लाजिमी है।

ANC की रिपोर्ट पहुंची 30%

बीपीएम के लापरवाही के कारनामे सिर्फ माइक्रो प्लान तक ही सीमित नहीं है। पिछले माह के समीक्षा बैठक में एएनसी की रिपोर्ट महज 30% प्रतिशत रही। जिस वजह से भी संस्थान की खूब किरकिरी करवाई थी। संस्थान को लगातार गर्त में डुबोने वाले कर्मी भले अपनी जिम्मेवारी दूसरे पर थोपने और तरह तरह के बहाने बना रहे हो परंतु विभाग द्वारा दी गई जिम्मेवारी का अनुपालन करना उनकी पहली प्राथमिकता है, अन्यथा ऐसे कर्मियों की नियुक्ति का क्या लाभ?

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