होली के उत्सव का अहम हिस्सा गुजिया : जानें इसके पीछे की दिलचस्प कहानी और इतिहास
Gujiya is an important part of Holi celebration: Know the interesting story and history behind it

Holi 2025: होली रंगों का त्यौहार है, लेकिन अगर आप खाने के शौकीन हैं, तो होली अलग-अलग स्वादों का त्यौहार भी है.इस त्यौहार के दौरान भारतीय रसोई में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं, लेकिन क्या आप गुजिया के बिना होली के बारे में सोच सकते हैं? जब भी हम होली के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में गुजिया का ख्याल आता है – यह उत्तर भारत की पॉपुलर और ट्रेडिशनल मिठाई है, जो मीठे खोये और सूखे मेवे से भरी कुरकुरी, परतदार पेस्ट्री होती है.
इसके इतिहास का स्टडी करने वालों का कहना है कि गुजिया सबसे पहले 13वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई थी और यह समोसे की एक मीठी प्रतिकृति थी, जो बाद में मध्य पूर्व के माध्यम से भारत पहुंची, आखिर गुजिया बनाने की विधि सबसे पहले किसकी याद आई? गुजिया का नाम किसने रखा और यह होली के उत्सव का अहम हिस्सा कब बनी? अगर कभी आपके मन में ये सवाल आए हैं, तो आप सही जगह पर है. आज हम इस स्वादिष्ट व्यंजन के दिलचस्प इतिहास पर चर्चा करते हैं.
तुर्की कनेक्शन
गुजिया की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत हैं, उनमें से एक तुर्की का बकलावा है. ऐसा माना जाता है कि गुजिया का विचार तुर्की के बकलावा से आया है, जो आटे के कवर में लिपटा हुआ और सूखे मेवों से भरा हुआ एक मीठा डिश है.
क्या है मान्यताएं?
जब भारतीय क्षेत्र की बात आती है तो यह माना जाता है कि गुजिया अपने वर्तमान अवतार में बुंदेलखंड या ब्रज क्षेत्र से संबंधित है. जो अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में फैला हुआ है. वृंदावन में, राधा रमन मंदिर 1542 का है और यह शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुजिया और चंद्रकला अभी भी मेनू का हिस्सा हैं, शायद यह साबित करता है कि वे कम से कम 500 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा थे.
अलग-अलग क्षेत्र, अलग-अलग नाम
ऐसे में कह सकते हैं कि गुजिया ने समय और स्थान में एक लंबा सफर तय किया और भारतीय रसोई में प्रसिद्ध हो गई. बेशक, एक-एक करके राज्यों को पार करते हुए इसका नाम बदल गया. बिहार में इसे पीड़किया, गुजरात में घुघरा और महाराष्ट्र में करंजी के नाम से जाना जाता है.