रांची। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है। करवा चौथ पति-पत्नी के आपसी प्रेम और समर्पण का महापर्व माना जाता है। करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु, सौभाग्य, समृद्धि और सुखी जीवन की कामना के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। हिंदू धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व होता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और शाम को चांद के दर्शन करते हुए अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस बार करवा चौथ का महापर्व 01 नवंबर, बुधवार को है। आईये जानते हैं कि क्या है करवा चौथ का शुभ मुहूर्त ..

करवा चौथ 2023 पूजा शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय
पूजा शुभ मुहूर्त- शाम 05:34 मिनट से 06: 40 मिनट तक
पूजा की अवधि- 1 घंटा 6 मिनट
अमृत काल- शाम 07:34 मिनट से 09: 13 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन और रात

चंद्रोदय का समय (दिल्ली) : 01 नवंबर 2023 की रात 08 बजकर 15 मिनट पर

क्या है करवा चौथ की सरगी?
सरगी के जरिए सास अपनी बहू को सुहाग का आशीर्वाद देती है. सरगी की थाल में 16 श्रृंगार की सभी समाग्री, मेवा, फल, मिष्ठान आदि होते हैं. सरगी में रखे गए व्यंजनों को ग्रहण करके ही इस व्रत का आरंभ किया जाता है. सास न हो तो जेठानी या बहन के जरिए भी ये रस्म निभा सकती हैं.

सरगी के सेवन का मुहूर्त
करवा चौथ व्रत वाले दिन सरगी सूर्योदय से पूर्व 4-5 बजे के करीब कर लेना चाहिए. सरगी में भूलकर भी तेल मसाले वाली चीजों को ग्रहण न करें. इससे व्रत का फल नहीं मिलता है. ब्रह्म मुहूर्त में सरगी का सेवन अच्छा माना जाता है.

करवा चौथ शुभ मुहूर्त
करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर दिन बुधवार को रखा जाएगा. करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.36 बजे से लेकर शाम 6.54 बजे तक रहेगा. यानी करवा चौथ पूजन के लिए आपको सिर्फ 1 घंटा 18 मिनट का ही समय मिलने वाला है. इस दिन चंद्रोदय का समय रात 8 बजकर 15 मिनट बताया जा रहा है.

करवा चौथ व्रत विधि
करवा चौथ के दिन स्नान आदि के बाद करवा चौथ व्रत और चौथ माता की पूजा का संकल्प लेते हैं. फिर अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है. पूजा के लिए 16 श्रृंगार करते हैं. फिर पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेश जी की विधि विधान से पूजा करते हैं. पूजा के समय उनको गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत्, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करते हैं. दोनों को श्रद्धापूर्वक फल और हलवा-पूरी का भोग लगाते हैं. इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं और उसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं.

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