बस 30 मिनट की देरी… NH-48 पर 4 घंटे फंसी एंबुलेंस, और खत्म हो गई एक ज़िंदगी!”

बस 30 मिनट की देरी... NH-48 पर 4 घंटे फंसी एंबुलेंस, और खत्म हो गई एक ज़िंदगी!

ट्रैफिक जाम सिर्फ समय की बर्बादी नहीं है — कभी-कभी यह किसी की ज़िंदगी छीन भी लेता है। मुंबई-अहमदाबाद नेशनल हाईवे (NH-48) पर हाल ही में घटी एक दिल दहला देने वाली घटना ने इस हकीकत को फिर सामने ला दिया है।

 हादसा जिसने एक ज़िंदगी लील ली

31 जुलाई, पालघर की रहने वाली छाया पूरब (49 वर्ष) सड़क की सफाई का निरीक्षण कर रही थीं, जब अचानक एक पेड़ उनके ऊपर गिर पड़ा। गंभीर रूप से घायल होने के बाद, उन्हें तुरंत मुंबई के हिंदुजा अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस बुलाई गई — लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।

 4 घंटे की जद्दोजहद, जो ज़िंदगी बचा नहीं पाई

जब एंबुलेंस ने पालघर से मुंबई के लिए रुख किया, तो रास्ते में मनोर से मीरा रोड तक फैले हुए भयानक ट्रैफिक जाम ने रास्ता रोक दिया।
चार घंटे तक एंबुलेंस जाम में फंसी रही। इस दौरान छाया को दी गई एनेस्थीसिया की दवा का असर खत्म होने लगा, और उनकी हालत तेज़ी से बिगड़ती चली गई।

आख़िरकार एंबुलेंस जब जाम से निकली, तो उन्हें पास के मीरा रोड के ऑर्बिट अस्पताल ले जाया गया — लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
अस्पताल पहुँचने से पहले ही उनकी मौत हो गई।

 “अगर वो सिर्फ 30 मिनट पहले पहुँच जातीं…”

डॉक्टरों का साफ़ कहना है कि अगर छाया पूरब को सिर्फ 30 मिनट पहले अस्पताल पहुँचाया जा सकता, तो उनकी जान बचाई जा सकती थी।
इस एक घटना ने न सिर्फ़ एक परिवार को गहरा सदमा दिया है, बल्कि NH-48 की दशा और सिस्टम की लापरवाही को भी उजागर कर दिया है।

NH-48: ट्रैफिक जाम या मौत का जाल?

यह पहली बार नहीं है जब NH-48 पर लगे जाम ने किसी की जान लेने में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई हो।
हर दिन हजारों वाहन इस रूट से गुजरते हैं, लेकिन सड़कों की हालत, ट्रैफिक कंट्रोल और एम्बुलेंस कॉरिडोर जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी नदारद हैं।

 अब सवाल यह है — क्या अगली छाया पूरब बनने से पहले सिस्टम जागेगा?

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