झामुमो की स्थापना: दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने कैसे बनाई थी पार्टी, जानिए इसके पीछे की कहानी

Establishment of JMM: How did Dishom Guru Shibu Soren form the party, know the story behind it

झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन हो गया है. उन्होंने 81 साल की उम्र में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांसे ली. झारखंड राज्य की मांग को एक संगठित राजनीतिक स्वरूप देने के लिए, शिबू सोरेन ने 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में एक विशाल रैली के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की.इस महत्वपूर्ण पहल में उनके साथ विनोद बिहारी महतो और कम्युनिस्ट नेता ए.के. राय भी शामिल थे. विनोद बिहारी महतो को पार्टी का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जबकि शिबू सोरेन ने पहले महासचिव का पद संभाला.

दिशोम गुरु ने धान काटो आंदोलन किया

जेएमएम का गठन झारखंड आंदोलन की वैचारिक नींव पर हुआ था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य अविभाजित बिहार में एक अलग झारखंड राज्य के लिए संघर्ष को तेज करना था.झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना विविध सामाजिक और वैचारिक शक्तियों के रणनीतिक अभिसरण का परिणाम थी. इसमें आदिवासी, कुरमी, मार्क्सवादी और अन्य हाशिए के समुदाय एक अलग राज्य और सामाजिक-आर्थिक न्याय के सामान्य उद्देश्य के तहत एकजुट हुए . ‘धान काटो आंदोलन’ जैसे जमीनी स्तर का आंदोलन किया.

1980 में मिली निर्वाचन आयोग से मान्यता

पार्टी ने शुरुआत में आदिवासी और कुरमी समाज में अपनी गहरी पैठ बनाई और धीरे-धीरे मुस्लिम, दलित, यादव और अन्य समुदायों के लोगों में भी इसकी पकड़ मजबूत होती गई. 1980 में, पार्टी को भारत निर्वाचन आयोग से मान्यता मिली.

1972 में जेएमएम की स्थापना हुई

वर्ष 1972 में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और एके राय ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और अलग राज्य की लड़ाई आरंभ की थी. 1984 तक विनोद बिहारी महतो अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव रहे. राजनीतिक हालात बदले और 1984 में निर्मल महतो जेएमएम के अध्यक्ष बने. निर्मल महतो के बाद 1987 में शिबू सोरेन ने कमान संभाली और करीब 38 वर्षों तक पार्टी के अध्यक्ष रहे.

एक मुट्ठी चावल मांगा

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गठन के पीछे अलग राज्य की लड़ाई को तेज करना था. शिबू सोरेन के नेतृत्व में आंदोलन ने गति पकड़ी. शिबू सोरेन ने संताल से लेकर, कोयलांचल और कोल्हान की यात्रा कर कार्यकर्ताओं के साथ खून-पसीना बहाया. आंदोलन के लिए हर घर से एक मुट्ठी चावल मांगा. लोगों ने साथ में चवन्नी और अठन्नी भी दिए, ताकि झारखंड राज्य की लड़ाई में उसका उपयोग हो सके.

Related Articles