झारखंड में जातीय जनगणना का पेंच फंसा, झामुमो ने रख दी ये शर्त, 9 मई को राज्यव्यापी होगा प्रदर्शन
The issue of caste census in Jharkhand got stuck, JMM put this condition, statewide protest will be held on 9th May

रांची। झारखंड में जातीय जनगणना का मामला सरना धर्म कोड की मान्यता को लेकर बड़े विवाद में फंस गया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने साफ कर दिया है कि जब तक केंद्र सरकार सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं देती, तब तक राज्य में जातीय जनगणना की अनुमति नहीं दी जाएगी। पार्टी के महासचिव विनोद पांडे ने यह स्पष्ट किया कि झामुमो इस मुद्दे को झारखंड की अस्मिता और पहचान से जुड़ा हुआ मानता है।
इसी मुद्दे को लेकर झामुमो की ओर से 9 मई को राज्यव्यापी आंदोलन की घोषणा की गई है। इस दिन झारखंड के सभी जिला मुख्यालयों पर एक दिवसीय धरना प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा। पार्टी ने अपने सभी जिला स्तरीय पदाधिकारियों को इस आंदोलन की तैयारी के निर्देश दे दिए हैं। प्रदर्शन का उद्देश्य केंद्र सरकार का ध्यान सरना धर्म कोड की मांग की ओर आकृष्ट करना है।
सरना धर्म के अनुयायी मुख्यतः आदिवासी समुदाय से आते हैं और ये प्रकृति पूजा में विश्वास रखते हैं। ये समुदाय स्वयं को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं मानते और लंबे समय से जनगणना के धर्म कॉलम में “सरना” के लिए अलग पहचान की मांग कर रहे हैं। झारखंड विधानसभा ने इस संबंध में 11 नवंबर 2020 को एक विशेष सत्र आयोजित कर सर्वसम्मति से “सरना धर्म कोड” के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया था, जिसे बाद में केंद्र सरकार को भेजा गया था।
हालांकि, इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार की ओर से अब तक कोई मंजूरी नहीं मिली है। झामुमो का कहना है कि जब आदिवासियों की धार्मिक पहचान ही जनगणना में मान्य नहीं होगी, तो जातीय जनगणना का कोई औचित्य नहीं रह जाता। महासचिव विनोद पांडे ने कहा कि पिछले पाँच वर्षों से यह मुद्दा लंबित है और केंद्र सरकार झारखंड की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी इस अहम मांग को नजरअंदाज कर रही है।
राजनीतिक दबाव बढ़ाने की रणनीति
झामुमो ने केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनाई है। 9 मई को होने वाले धरना प्रदर्शन के माध्यम से पार्टी जनभावनाओं को प्रकट करेगी और सरना धर्म कोड की मान्यता की मांग को और मुखर करेगी। पार्टी नेताओं ने कहा है कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक आदिवासी समाज की धार्मिक पहचान को संवैधानिक रूप से मान्यता नहीं मिल जाती।