झारखंड का लड़का, जो टाईगर बनकर दहाड़ा: जयराम का उदय, कहीं सुदेश का अस्त तो नहीं? झारखंड की राजनीति ध्रुवतारा, जानिये एक आंदोलन से कैसे चमके
The boy from Jharkhand, who roared like a tiger: The rise of Jairam, is it the set of Sudesh? Jharkhand's political star, know how to shine through a movement

Jairam Mahto: …क्या जयराम महतो का उदय होना…सुदेश महतो का अस्त बन जायेगा? ये सवाल भविष्य़ की चुनौतियों में उलझा हुआ जरूर है, लेकिन राजनीति के नजरिये से इसका जवाब जानना आज भी बेहद जरूरी है। बेशक 2024 के चुनाव में जयराम महतों की धमक से फिलहाल आहत भाजपा और आजसू ही दिखायी दे रही है, लेकिन यही रफ्तार रही, तो झामुमो को भी इसका नुकसान जरूर उठा पड़ सकता है।
जयराम Vs सुदेश महतो
इस बार का चुनाव परिणाम ने ऐसा लगता है कि राज्य में ओबीसी कुर्मी समुदाय के नए चेहरे के रूप में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) के प्रमुख जयराम महतो उर्फ ‘टाइगर’ पर मुहर लगा दी है। जेएलकेएम ने राज्य की 71 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे और उसे जीत सिर्फ एक सीट पर मिली, लेकिन उसने कम से कम 14 सीटों पर चुनाव परिणाम प्रभावित किया, जिसका बड़े पैमाने पर इंडिया ब्लॉक को फायदा हुआ और भाजपा को बड़ा झटका लगा।
आजसू के लिए घातक बने जयराम महतो
दूसरी ओर, कुर्मी समुदाय (ओबीसी) का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाली ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन में 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे जैसे तैसे सिर्फ एक सीट मिली। 231 वोटों के मामूली अंतर से मांडू सीट पर उसके प्रत्याशी जीते। आजसू के लिए सबसे बड़ा झटका सिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी प्रमुख सुदेश महतो की हार रही। डुमरी निर्वाचन क्षेत्र से झामुमो की बेबी देवी को हराने वाले 29 वर्षीय जयराम महतो ने कहा, ‘सपने देखना चाहिए और युवाओं को बड़े सपने देखने चाहिये, विधायक बनने से मेरे साथ-साथ युवाओं के लिए भी रास्ते भी खुल गए हैं।
बदल दिया डूमरी का पूरा समीकरण
जयराम महतो राज्य में ‘झारखंड का लड़का’ जैसे उपनाम से लोकप्रिय हैं। डुमरी में जयराम को 94,496 वोट मिले और उन्होंने बेबी देवी को 10,945 वोटों के अंतर से हराया। आजसू पार्टी की यशोदा देवी 35,890 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं। डुमरी सीट कभी झामुमो और उसके नेता जगरनाथ महतो का गढ़ थी, जो झारखंड के गठन के बाद से इस निर्वाचन क्षेत्र से एक भी चुनाव नहीं हारे. इस चुनाव में डुमरी सीट पर विभिन्न जातियों के युवाओं के साथ कुर्मी आबादी जयराम महतो के पीछे लामबंद होती दिख रही है. झारखंड के कुल मतदाताओं में कुर्मी समुदाय की हिस्सेदारी 15% है. 2011 की जनगणना के आंकड़ों से परिचित सूत्रों के मुताबिक राज्य में ओबीसी कुर्मी आबादी 8.6% है।
कुर्मी वोट बैंक को किया जयराम ने प्रभावित
‘झारखंड की 4 करोड़ की अनुमानित आबादी को देखते हुए, 8.6% पर भी राज्य में कुर्मी समुदाय 34 लाख बैठती है, और उनमें से 20 लाख वोट देने के लिए पात्र होंगे. इस तरह कुर्मी वोटों का किसी एक पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में झुकाव चुनावों पर असर डाल सकता है. जयराम महतो ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में कुर्मी समुदाय को अपने पक्ष में लामबंद करने में सफलता पाई है.’ सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) पार्टी प्रमुख सुदेश महतो झामुमो के अमित महतो से 23,867 मतों के अंतर से हार गए। सुदेश की हार और अमित की जीत भी निर्वाचन क्षेत्र में जेएलकेएम के प्रदर्शन से जुड़ी है, जहां उसके उम्मीदवार देवेंद्र नाथ महतो को 41,725 वोट मिले।
जयराम महतो ने 71 प्रत्याशी उतारे
जेएलकेएम ने विधानसभा चुनाव में 71 उम्मीदवार उतारे, जिसमें जयराम दो सीटों – डुमरी और बेरमो से चुनाव लड़ रहे थे। डुमरी की लड़ाई में जहां झामुमो को नुकसान हुआ, वहीं बेरमो की लड़ाई में झामुमो की सहयोगी कांग्रेस को फायदा हुआ। बेरमो में जयराम को 60,871 वोट मिले और वह कांग्रेस के कुमार जयमंगल से 29,375 वोटों के अंतर से हार गए, जबकि भाजपा के रविंदर पांडे 58,352 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. बेरमो की तरह, जेएलकेएम ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में वोट काटे, जिससे बड़े पैमाने पर इंडिया ब्लॉक को फायदा हुआ और बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा. कम से कम 13 सीटों – सिल्ली, बोकारो, गोमिया, गिरिडीह, टुंडी, इचागढ़, तमाड़, चक्रधरपुर, चंदनक्यारी, कांके, छतरपुर, सिंदरी और खरसावां में- जेएलकेएम को मिले वोट जीत के अंतर से अधिक थे।
कैसे उदय हुआ जयराम महतो का
साल 2022 की शुरुआत में जब हेमंत सरकार ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से जिला स्तरीय चयन प्रक्रिया में मगही, भोजपुरी और अंगिका को क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में शामिल करने के लिए एक अधिसूचना जारी की, तो जयराम अपने संगठन झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के माध्यम से- बोकारो, धनबाद, गिरिडीह और कोडरमा जिलों में ‘भाषा विरोध’ का चेहरा बन गए. राज्य सरकार के इस फैसले ने लोगों के एक वर्ग के बीच नाराजगी पैदा कर दी. खासकर बोकारो और धनबाद में, जिन्होंने भोजपुरी और मगही को शामिल करने को आदिवासियों और मूलवासियों के अधिकारों पर उल्लंघन के रूप में देखा।
भारी विरोध का सामना करने पर राज्य सरकार ने अधिसूचना रद्द कर दी. लेकिन जयराम महतो के नेतृत्व में झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के बैनर तले शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन एक राजनीतिक पहचान की आवश्यकता में बदल गया और तभी 2024 की शुरुआत में जेएलकेएम का गठन हुआ. जयराम महतो इस राजनीतिक दल के मुखिया बने. इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनाव में, जयराम ने गिरिडीह निर्वाचन क्षेत्र से 3.47 लाख वोट हासिल किए और अकेले दम पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल रहे. वह 20,000 वोटों के अंतर से तीसरे स्थान पर रहे थे. यहां से एनडीए की सहयोगी आजसू पार्टी के चंद्र प्रकाश चौधरी जीतने में सफल रहे थे।