रांची: राज्य प्रशासनिक सुधार के तहत जिलाधिकारियों के अधिकारों में कमी लाई जाएगी वहीं निचले श्रेणी के अधिकारियों को पावरफुल बनाया जाएगा। सचिवों का अतिरिक्त प्रभार भी कम किया जाएगा। हिंदी दैनिक, दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक सचिव, उपायुक्त तथा विभागीय मंत्रियों द्वारा फाइलों के निस्तारण की समय सीमा भी तय की जाएगी। हालांकि, राज्य के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव इस दायरे से बाहर होंगे। गौरतलब है कि 2019 में हेमंत सोरेन सरकार का गठन होने के बाद मार्च 2022 में पूर्व विकास आयुक्त डॉ. देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता में राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था।

मुख्य सचिव विभागीय प्रधानों के साथ करेंगे मीटिंग

जल्द ही मुख्य सचिव सुखदेव सिंह विभागीय प्रधानों के साथ अहम मीटिंग करेंगे। इसमें आयोग की जरूरी सिफारिशों को लागू करने की रूपरेखा तैयार की जाएगी। गौरतलब है कि राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग ने जनवरी 2022 में राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। उम्मीद है कि नया बदलाव इसी वर्ष लागू होगा।

राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग ने दी हैं कई सिफारिशें

दरअसल, डॉ. देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता वाली राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जिलाधिकारियों के पास अपने मूल दायित्व के अतिरिक्त 116 अन्य कमिटियों का प्रभार होता है। वह किसी कमेटी में अध्यक्ष होता है तो किसी में सदस्य । ऐसे में हमेशा कन्फ्यूजन रहती है कि करना क्या है। उन्होंने कहा कि इससे उपायुक्तों की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। इसे ऐसे समझा गया कि वही जिलाधिकारी जब केंद्र प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं तो बेहतर काम करते हैं। ऐसे में सोचा गया कि यदि कुछ दायित्व कम किए जाएं तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। वहीं, एडिशनल कलेक्टर और एसडीओ का दायित्व थोड़ा बढ़ाया जाएगा क्योंकि अपेक्षाकृत यहां कम दायित्व भार होता है।

राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग ने सुझाव दिया है कि डिलीवरी औ सर्विस को सरकार की बजाय स्थानीय निकायों के हवाले कर दिया जाए। इससे ना केवल सरकार का अतिरिक्त कार्यभार कम होगा बल्कि स्थानीय निकाय भी प्रशासनिक तौर पर मजबूत बनेंगे। प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य जैसी जिम्मेदारियां स्थानीय निकाय को सौंपी जाए।

प्रशासनिक कार्यों में ई-ऑफिस कल्चर को बढ़ावा देने की सलाह

विभागीय सचिवों को भी एक से अधिक विभागों का अतिरिक्त प्रभार देने से बचने की सिफारिश की गई है। अतिरिक्त प्रभार होने से मूल दायित्व काही निर्वहन ठीक से नहीं हो पाता। ऐसे में परिणामों पर प्रतिकूल असर होता है। मंत्री, ओएसडी और निजी सचिवों की भागीदारी भी तय करने की बात इस रिपोर्ट में कही गई है। राज्य प्रशासनिक आयोग ने अपनी जांच-पड़ताल में पाया कि विभागों का काम संतोषजनक नहीं है। बिना दबाव के कोई भी कार्य तय समय पर नहीं हो पाता।

प्रशासनिक अक्षमता सामने आती है। ऐसे में अधिकारियों पर कार्यभार कम करने से बेहतर परिणाम मिल सकेंगे। आयोग ने सरकार को सलाह दी है कि ई-ऑफिस कल्चर को बढ़ावा दिया जाए जिससे ना केवल काम समय पर होंगे बल्कि पारदर्शिता भी आएगी।

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