झारखंड: “झूठ की राजनीति का झंडाबरदार” हैं बाबूलाल मरांडी, रिम्स-2 को लेकर क्यों भड़क गये इरफान अंसारी, इधर, बाबूलाल बोले, किसी कीमत पर नहीं….

रांची। झारखंड की बहुप्रतीक्षित रिम्स-2 परियोजना अब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के विकास से ज्यादा एक राजनीतिक मुद्दा बनती जा रही है। भाजपा ने जहां इस परियोजना के लिए नगड़ी क्षेत्र की उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण का विरोध किया है, वहीं सरकार ने इसे जनहित में लिया गया जरूरी फैसला बताया है।
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि रांची जिले के कांके प्रखंड के नगड़ी क्षेत्र में गरीब आदिवासी परिवारों की उपजाऊ खेती योग्य भूमि पर राज्य सरकार जबरन अधिग्रहण कर रही है। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि भाजपा किसी भी कीमत पर यह भूमि अधिग्रहण नहीं होने देगी और आदिवासी हितों की रक्षा के लिए आंदोलन करेगी।
मरांडी ने कहा, “हज़ारों गरीब आदिवासी परिवार सालों से इस भूमि पर खेती कर जीवन यापन कर रहे हैं। हेमंत सरकार की नजर लगातार इनकी जमीनों पर है। भाजपा पूरी मजबूती से इनके साथ खड़ी है और गैरकानूनी कब्जा नहीं होने देगी।”
मंत्री इरफान अंसारी का पलटवार
मरांडी के इन आरोपों पर स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी “झूठ की राजनीति का झंडाबरदार” बन चुके हैं और सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए आदिवासियों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।
अंसारी ने कहा, “रिम्स-2 किसी भी आदिवासी या किसान की निजी जमीन पर नहीं बन रहा, बल्कि पूरी तरह सरकारी स्वामित्व वाली भूमि पर प्रस्तावित है। बाबूलाल जी जनता को गुमराह कर रहे हैं। जब भाजपा सरकार ने विधानसभा भवन और स्मार्ट सिटी के लिए आदिवासियों की जमीन ली, तब ये मौन क्यों थे?”
उन्होंने आरोप लगाया कि बाबूलाल मरांडी केवल राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, न कि जनता के लिए। “अगर बाबूलाल जी को विकास की चिंता होती तो वे रिम्स-2 जैसी जनकल्याणकारी परियोजना का समर्थन करते।”
सरकार का पक्ष
सरकार का कहना है कि रिम्स के मौजूदा परिसर पर मरीजों का अत्यधिक दबाव है। हर दिन हजारों मरीज झारखंड के कोने-कोने से रिम्स पहुंचते हैं। ऐसे में रिम्स-2 की आवश्यकता वर्षों से महसूस की जा रही थी। यह नया परिसर राज्य के लोगों को बेहतर, सुलभ और अत्याधुनिक इलाज मुहैया कराने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम होगा।
रिम्स-2 परियोजना झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को नई ऊंचाई पर ले जाने का सपना है, लेकिन जिस तरह इसका राजनीतिकरण हो रहा है, उससे असली मुद्दा पीछे छूटता दिख रहा है। एक तरफ आदिवासियों की भूमि और अधिकारों की सुरक्षा का सवाल है, तो दूसरी तरफ आम जनता को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार विकास और संवेदनशीलता के बीच संतुलन कैसे कायम करती है, और विपक्ष इसे जनता से जुड़े मुद्दे के रूप में उठाता है या सिर्फ राजनीतिक हथियार बनाता है।