झारखंड: IAS के बेटे ने तीन-तीन बार लिया जन्म, 5 साल में तीन बार हुआ जन्म, तीन बर्थ सर्टिफिकेट पर बढ़ेगी मुश्किल

Jharkhand: IAS's son took birth thrice, took birth thrice in 5 years, difficulty will increase on three birth certificates

IAS Rajiv Ranjan : बेटे का बर्थ सर्टिफिकेट आईएएस राजीव रंजन की मुश्किलें बढ़ा सकता है। आरोप है कि झारखंड कैडर के आईएएस अधिकारी राजीव रंजन के बेटे आदित्य के नाम पर तीन जन्म प्रमाण पत्र जारी किया गया है। अब इस मामले में जांच की मांग उठी है। भाजपा ने इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता अजय साह ने इसे झारखंड में व्याप्त भ्रष्टाचार का उदाहरण बताया है।

आरोप के मुताबिक आईएएस राजीव रंजन के पुत्र आदित्य ने 3-3 जन्म प्रमाण पत्र जारी किया गया है। कमाल की बात ये है कि तीनों अलग-अलग साल के हैं। 13 अक्टूबर 2013, 13 अक्टूबर 2015 और 13 अक्टूबर 2017 को आदित्य ने अलग-अलग जगहों पर जन्म लिया। जन्म का वर्ष बदलता गया, जन्मस्थान बदलता गया, लेकिन राज्य और शहर वही रही।

आरोप के मुताबिक झारखंड की राजधानी रांची में अलग-अलग जगहों पर उसका जन्म हुआ। बाकायदा अलग-अलग जगहों और अलग-अलग तारीख के साथ उसका जन्म प्रमाण पत्र भी रांची नगर निगम ने बना दिया। इस अधिकारी के बेटे की जन्मतिथि और जन्म स्थान के फर्जीवाड़ा का खुलासा तब हुआ, जब पासपोर्ट कार्यालय और रांची नगर निगम के बीच पत्राचार हुआ।

आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के इस अधिकारी की पत्नी ने हर बार बेटे को घर में ही जन्म दिया। भाजपा का आरोप है कि रांची नगर निगम में आम लोगों को अपने बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं. अधिकारियों की लापरवाही के कारण न जाने कितने बच्चों का स्कूलों में दाखिला तक नहीं हो पाता. दूसरी ओर प्रभावशाली अधिकारी अपने रसूख का इस्तेमाल कर नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। उन्होंने मांग की है कि इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं और दोषियों को दंडित किया जाए।

भाजपा ने इस पूरे प्रकरण में दोषी आईएएस अधिकारी और नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों पर फर्जीवाड़े के कानून के तहत मामला दर्ज करने की मांग की है। अजय साह ने इस मामले को नगर निकाय चुनावों से भी जोड़ा है। उन्होंने कहा कि झारखंड में नगर निकाय और निगम पूरी तरह अधिकारियों के भरोसे चल रहे हैं, जहां जवाबदेही लगभग नहीं के बराबर है। जनप्रतिनिधियों की गैर-मौजूदगी ने इन संस्थानों को भ्रष्टाचार के अड्डे में बदल दिया है।

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