झारखंड: 30 को पता चलेगा भाजपा की हार का कौन है गुनाहगार, कार्यकर्ता अपने ही नेताओं के सर फोड़ रहे हार का ठिकरा, ये लग रहे आरोप
Jharkhand: On 30th we will know who is responsible for BJP's defeat, workers are blaming their own leaders for the defeat, these are the allegations

Jharkhand Vidhansabha Election। भाजपा ने कभी नहीं सोचा होगा, कि झारखंड में इतनी करारी हार मिलेगी। आदिवासी वोटरों के बीच बुरी तरह से हारे भाजपा ने इस बार अपने उन इलाकों को भी गंवा दिया, जहां से वो जीतती आ रही थी।
धनबाद, बोकारो जैसे जिलों से उसे अच्छे वोट की उम्मीद थी, लेकिन हर जगह से उसे मायूसी मिली। इधर अब हार की वजह तलाशने की शुरूआत भाजपा कर रही है। उधर इस हार ने भाजपा कार्यकर्ताओं को भी आक्रोशित कर दिया है।
भाजपा ने 30 नवंबर को हार की समीक्षा के लिए बैठक बुलायी है। बैठक में शीर्ष नेता मौजूद रहेंगे, जो हार की समीक्षा करेंगे। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या भाजपा खुद की कमजोरी की वजह से हारी या फिर विपक्ष की मजबूती की वजह से। ऐसा इसलिए क्योंकि झामुमो की तरफ से कल्पना सोरेन ने 98 सभाएं की।
हेमंत सोरेन लगभग सभी क्षेत्र में गए। लेकिन भाजपा के बड़े आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपई सोरेन अपने ही क्षेत्र में सिमटे रहे। कल्पना सोरेन के सामने केंद्रीय नेतृत्व ने स्मृति इरानी या बांसुरी स्वराज को भेजा होता तो इसका असर होता।
भाजपा के कार्यकर्ता इसके लिए विरोधियों से ज्यादा अपने नेताओं को ज्यादा जिम्मेदार बता रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता का कहना है कि भाजपा नेता मान चुके थे कि सरकार उनकी ही बनेगी, इसलिए किसी ने मेहनत ही नहीं की। जिन्होंने कभी वार्ड का चुनाव नहीं लड़ा उन्हें पलामू और संताल परगना जैसे बड़े प्रमंडल का प्रभारी बना दिया गया।
बालमुकुंद सहाय को संताल परगना का प्रभारी बनाया गया। इसी तरह विकास प्रीतम को पलामू का प्रभारी बनाया गया। गणेश मिश्रा एक बार विधानसभा का चुनाव लड़कर हार चुके हैं। उन्हें दक्षिण छोटानागपुर का प्रभारी बनाया गया। हार के लिए इन्हें सबसे बदाड़ा गुनाहगार बताया जा रहा है।
कमाल की बात ये है कि जिन्हें प्रभारी बनाया गया, वो खुद ही चुनाव लड़ना चाहते थे। ऐसे में अगर किसी दूसरे को जीताने की जिम्मेदारी उन्हें दी गयी, तो क्या उन्होंने जिम्मेदारी के साथ काम किया होगा। दावा किया जा रहा है कि विकास प्रीतम गिरिडीह जिले की किसी सीट से तो बालमुकुंद सहाय गढ़वा से चुनाव लड़ना चाहते थे।