गजब दुर्गति है! प्रदेश अध्यक्ष भी हारे, विधायक दल के नेता भी नही जीत सके, 61 सीट पर लड़कर बमुश्किल 5 जीत पाये, कांग्रेस ने जानिये हार का ठिकरा किसके सर फोड़ा

It's a terrible plight! Even the state president lost, the legislative party leader failed to win, contesting 61 seats, barely winning 5. Find out who Congress blamed for the defeat.

Bihar Election 2025। बिहार में कांग्रेस की इस बार जैसी दुर्गति हुई है, वैसी शायद ही किसी ने सोची होगी। 61 सीटों पर चुनाव लड़कर दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाने वाली कांग्रेस की इस हार ने पार्टी नेतृत्व को आईना दिखा दिया है। कांग्रेस की हार का आलम ये है कि ना तो प्रदेश अध्यक्ष जीत सके और ना ही विधायक दल के नेता को जीत मिली।

 

चुनाव परिणामों ने साफ़ संकेत दे दिया है कि कांग्रेस राज्य की राजनीति में फिलहाल एक कमजोर कड़ी बनी हुई है। पार्टी के भीतर चल रही कलह, मजबूत नेतृत्व का अभाव, कैडर की कमजोरी और चुनावी रणनीति में गंभीर चूक कांग्रेस की करारी हार के प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।

 

कांग्रेस नेतृत्व खुद अपनी सीटें नहीं बचा सका

चुनाव में टिकट बांटने वाले प्रमुख नेता तक अपनी सीटें नहीं बचा पाए, जो पार्टी की स्थिति का बड़ा संकेत है।

• प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम (कुटुंबा) चुनाव हार गए।

• विधायक दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान (कदवा) को भी जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।

जब शीर्ष नेतृत्व ही जनता का भरोसा हासिल नहीं कर पाया, तो अन्य उम्मीदवारों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।

 

चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन बना भारी

चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पुराने प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर नए अध्यक्ष और नए बिहार प्रभारी की नियुक्ति कर दी। यह प्रयोग कार्यकर्ताओं में भ्रम और निराशा का कारण बना। नए नेतृत्व को बिहार की राजनीतिक जमीन का पर्याप्त अनुभव नहीं था, जिसका असर चुनावी रणनीति पर भी साफ़ देखने को मिला।

 

नए प्रभारी और अध्यक्ष ने चुनाव से पूर्व प्रदेश कांग्रेस को एक तरह की प्रयोगशाला बना दिया। टिकट बंटवारे में असंगति, सहयोगी दलों के साथ तालमेल की कमी, मुख्यमंत्री चेहरे पर मतभेद और कई सीटों पर गलत उम्मीदवार चयन ने कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर किया।

 

कृष्णा अल्लावारू की भूमिका पर उठे सवाल

प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावारू पर चुनाव के दौरान संवादहीनता और जिला स्तर के असंतोष को समझने में नाकामी के गंभीर आरोप लग रहे हैं। महागठबंधन में भी उनका तालमेल कमजोर रहा, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा।कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सकी। यह प्रदर्शन 2010 के विधानसभा चुनाव जैसा ही रहा, जब पार्टी सिर्फ चार सीटें जीत पाई थी।

 

महागठबंधन में मचा हड़कंप — नेताओं का फूटा गुस्सा

नतीजों के रुझान आने के साथ ही महागठबंधन के भीतर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने हार के लिए आरजेडी के सलाहकार संजय यादव और कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावारू को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा:“यह बताना संजय यादव और कृष्णा अल्लावारू का काम है कि कांग्रेस कहां चूक गई। जिस तरह भीड़ आ रही थी और जो नतीजे आए हैं, वह बिल्कुल उलट है।“

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