नयी दिल्ली। IAS उदित प्रकाश की मुश्किलें बढ़ गयी है। 50 लाख रिश्वत लेने के मामले में कार्रवाई की कार्रवाई की सिफारिश कर दी है। IAS उदित प्रकाश दिल्ली सरकार में कई अहम पदों पर रहे हैं। दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने आईएएस उदित प्रकाश के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है। आरोप है कि उदित प्रकाश राय ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 50 लाख रुपये लेकर कई काम किये।

रिटायरमेंट के पहले उदित प्रकाश कृषि विपणन बोर्ड के वाइस चेयरमैन थे। उपराज्यपाल ने गृह मंत्रालय को कार्रवाई की सिफारिश भेजी है। ये सिफारिश CBI की जांच के आधार पर की गयी है।  इसमें कहा गया था कि उदित प्रकाश ने DAMB में एक्जिक्यूटिव इंजिनियर पीएस मीना की ‘अनुचित मदद’ करने के बदले 50 लाख रुपये की रिश्वत ली थी.

सीबीआई ने कहा था कि मीना से जुड़े दो केसों में उदित प्रकाश ने सजा कम करने में मदद की थी. आय से अधिक संपत्ति के ये मामले मीना के बेटे और उनकी पत्नी के खिलाफ थे. इस मामले में जेएस शर्मा ने 2020 में शिकायत दर्ज कराई थी.

उदित प्रकाश की गिनती दिल्ली की AAP सरकार में खास अफसरों में होती है। वो दिल्ली सरकार के कई अहम पदों पर रहे, वो दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ भी रहे। उपराज्यपाल  MHA को भेजी कार्रवाई की सिफारिश में कहा है कि जानबूझकर चूक और अनुचित मदद के उदाहरण भ्रष्टाचार के केस हैं। इसलिए उदित प्रकाश के खिलाफ जरूरी एक्शन लिया जाना चाहये।

क्या हैं आईएएस पर आरोप

उदित प्रकाश ने दिल्‍ली एग्रीकल्‍चरल मार्केटिंग बोर्ड  (DAMB) के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पीएस मीना से 50 लाख रुपए की रिश्वत लेकर उन्हें फायदा पहुंचाया. उदित प्रकाश बोर्ड के उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे।  उदय प्रकाश ने आय से अधिक संपत्ति के 2 मामलों में पी एस मीना को फायदा पहुंचाया। अगस्‍त माह की शुरुआत में उपराज्यपाल वी.के सक्सेना नेआईएएस अधिकारी ए.जी कृष्णा और DANICS अधिकारी आनंद कुमार तिवारी के निलंबन को मंजूरी देते हुए  इनके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए थे. आईएएस अधिकारी एजी कृष्णा नई एक्साइज पॉलिसी लागू होने के समय एक्साइज कमिश्नर थे, जबकि आनंद कुमार तिवारी डिप्टी कमिश्नर। दोनों अधिकारियों के अलावा दो अन्य DANICS अधिकारी जो उस समय डिप्टी कमिश्नर थे और एक्साइज विभाग के अन्य अधिकारियों को निलंबित किया गया था।  साथ ही उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे. उपराज्यपाल दफ्तर सूत्रों के मुताबिक, एलजी ने यह निर्णय संबंधित अधिकारियों की ओर से आबकारी नीति के कार्यान्वयन में गंभीर चूक के मद्देनजर लिया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ टेंडर को अंतिम रूप देने में अनियमितताएं और चुनिंदा विक्रेताओं को पोस्ट टेंडर लाभ प्रदान करना शामिल है. 

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