‘एक सरकार कानून बनाए, दूसरी रद्द करे तो कैसे चलेगा!’, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लगाई फटकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार को पंजाब सरकार से पूछा कि क्या एक राजनीतिक दल द्वारा कानून बनाने और उसके बाद किसी अन्य दल द्वारा गठित सरकार द्वारा उसे निरस्त करने से अनिश्चितता पैदा नहीं होगी।
बता दें कि, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया, जिसमें खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। वहीं याचिकाकर्ता और राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। खालसा यूनिवर्सिटी और खालसा कॉलेज चैरिटेबल सोसाइटी ने नवंबर 2017 के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, खालसा विश्वविद्यालय की स्थापना खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम 2016 के तहत की गई थी, और फार्मेसी कॉलेज, शिक्षा कॉलेज और महिलाओं के लिए कॉलेज, जो पहले सोसायटी द्वारा संचालित थे, को विश्वविद्यालय में विलय कर दिया गया था। वहीं 30 मई, 2017 को खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम को निरस्त करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया गया, जिसके बाद निरसन विधेयक, 2017 पारित किया गया।
निरस्तीकरण विधेयक को बताया मनमाना
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि निरस्तीकरण विधेयक मनमाना है और पूरी प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जो कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है। इसके विपरीत, पंजाब का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि इसमें कुछ भी मनमाना नहीं है।
शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार ने 2016 में एक कानून बनाया था; हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली बाद की कांग्रेस सरकार ने उस कानून को निरस्त कर दिया। उन्होंने कहा कि, विश्वविद्यालय के किसी भी छात्र या संकाय सदस्य ने 2017 में बनाए गए कानून को चुनौती नहीं दी है। छात्रों के हितों पर किसी भी तरह से प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। पीठ ने टिप्पणी की, “यह पूरी तरह से कानून का मामला है। हमें इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है कि प्रवेश दिए गए या नहीं।”