रांची। सीता सोरेन की नाराजगी तो काफी महीनों से नजर आ रही थी, लेकिन इतनी आसानी से वो पार्टी को छोड़ देगी, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। हालांकि चर्चाएं हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद से ही तेज थी, कि सीता सोरेन कुछ बड़ा कदम उठा सकती है। सीता सोरेन का बार-बार दिल्ला जाना, निशिकांत दुबे का सीता सोरेन के पक्ष में बयान देना, ये तो बता ही रहा था कि सीता सोरेन को अपने खेमे में लाने की बीजेपी कोशिश कर रही है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि सीता सोरेन की नाराजगी कैबिनेट में जगह नहीं पाने से ज्यादा, उस बात को लेकर थी, कि कल्पना सोरेन को उनसे ज्यादा तवज्जों दी जा रही है।

इस नाराजगी का असर ये हुआ कि 4 मार्च को कल्पना सोरेन की पालिटिक्स में इंट्री हुई और फैसले के 15 दिन के बाद ही सीता सोरेन ने इस्तीफा दे दिया। सीता सोरेन के इस्तीफे के पीछे जानकार एक वजह दुमका लोकसभा की सीट को मानते हैं। दरअसल इंडिया गठबंधन की बैठक में शामिल होने गई कल्पना सोरेन से जब पूछा गया कि क्या वह चुनाव लड़ेंगी उन्होंने इस सवाल के जवाब में कहा कि अगर पार्टी जिम्मेदारी देगी तो मैं चुनाव लड़ने के बारे में विचार करूंगी।

दुमका से इस बार शिबू सोरेन के चुनाव लड़ने की संभावना कम है। जाहिर है अगर कल्पना सोरेन को पार्टी टिकट देगी, उनके लिए दुमका की लोकसभा सीट काफी सेफ होगी। लेकिन दुमका की सीट पर सीता सोरेन की भी नजर थी। सीता सोरेन चाहती थी कि वो लोकसभा में जाये और उनकी बेटी उनकी परंपरागत जामा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े। लेकिन कल्पना सोरेन की पालटिकल इंट्री से सीता सोरेन की मंशा को बड़ा झटका लग गया।

अब दुमका सीट पर बीजेपी ने तो प्रत्याशी उतार दिये हैं, लेकिन भाजपा उसे खाली भी करा सकती है, दूसरी तरफ JMM ने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं। जाहिर है सीता सोरेन के पार्टी छोड़ने का कितना नुकसान जेएमएम को कितना होगा इसका आकलन तो मुश्किल है लेकिन यह तय है कि इस फूट का लाभ भाजपा को जरूर मिलेगा। जिसकी तलाश बीजेपी लंबं समय से कर रही थी।

याद होगा, जब मुख्यमंत्री के लिए कल्पना सोरेन का नाम चल रहा था, तो उस दौरान भी सीता सोरेन ने कड़ी आपत्ति जतायी थी। वो बार-बार अपने हक की बात कहती थी। दुर्गा सोरेन के निधन के बाद सीता सोरेन ने राजनीति में कदम रखा था। कई मौकों पर सीता सोरेन ने परिवार में अपनी उपेक्षा को लेकर सवाल खड़े किए। हेमंत सोरेन के खिलाफ जब ईडी कार्रवाई कर रही थी तो पूछताछ में शामिल होने से पहले हेमंत सोरेन ने विधायक दल की कई बार बैठक बुलाई लेकिन इस बैठक में ना सीता सोरेन दिखीं और ना ही बसंत सोरेन बैठक में नजर आए।

इस दौरान राजनीतिक चर्चा चली कि सोरेन परिवार एकजुट नहीं है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस कदम की बड़ी वजह है परिवार में किसकी कितनी भागीदारी। सीता ने त्यागपत्र में भी लिखा है कि पार्टी और परिवार में उनकी अपेक्षा हो रही है। 39 वर्ष की उम्र में 21 मई 2009 को दुर्गा सोरेन की मौत हो गई। उनकी मौत के बाद शिबू सोरेन ने अपने मंझले बेटे हेमंत सोरेन को उत्तराधिकारी के रूप में चुना और आगे बढ़ाया। सीता सोरेन यह मानती है कि उन्हें अपने पति के हिस्से का सम्मान नहीं मिलता है। दुर्गा सोरेन जिस जामा से विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते और जीतते थे, वहां की जनता ने सीता सोरेन को भी वही प्रेम दिया। अगर वो जीवित होते तो पार्टी का चेहरा होते। ऐसे में सीता सोरेन का झामुमो छोड़ना सामान्य राजनीतिक घटनाक्रम है या फिर इसके पीछे कुछ और मायने है, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।

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