रांची। हेमंत सोरेन दुमका से चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालांकि चर्चा भी पूरजोर थी और पार्टी की तैयारी हेमंत सोरेन दुमका से चुनाव लड़ाने की पूरी थी, लेकिन पार्टी को ऐन मौके पर अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। इसकी बड़ी वजह पार्टी की वो इंटर्नल सर्वे रिपोर्ट है, जिसमें दुमका की सीट JMM के पक्ष में जाती नहीं दिख रही है। लिहाजा, पार्टी को अपने अपने मुखिया के राजनीतिक कद को बचाने के लिए अपना निर्णय बदलना पड़ा।

क्यों नहीं हेमंत ने दुमका से लड़ा चुनाव
पार्टी स्तर पर हेमंत सोरेन के दुमका से चुनाव लड़ने की तैयारी पूरी थी। लेकिन ऐन मौके पर पार्टी ने अपनी रणनीति बदल दी। चर्चा है कि इंटर्नल सर्वे की आयी रिपोर्ट के आधार पर JMM ने ये निर्णय लिया। दरअसल सर्वे की रिपोर्ट ये बता रही थी कि झारखंड में भी मोदी लहर का पूरा असर है। JMM छोड़कर भाजपा में शामिल हुई सीता सोरेन ने काफी हद तक खुद को पार्टी और परिवार की विक्टिम ( प्रताड़ित) बताने में कामयाब हो गयी है। ऐसे में अगर हेमंत सोरेन दुमका से चुनाव लड़ते तो भाभी-देवर का फैमली फाइट JMM के खिलाफ चला जाता।

पार्टी के मुखिया का कद बरकरार रखने की कोशिश
JMM इस वक्त मुश्किल दौर से गुजर रही है। पार्टी में टूट पड़ चुकी है, फैमली बिखर गयी है, शिबू सोरेन ढलती उम्र में कानूनी पेचिदगी में फंसे हुए हैं और खुद हेमंत सोरेन भी जेल में है। ऐसे में पार्टी फिलहाल कोई भी जोखिम लेने की स्थिति में है। खासकर वैसे जोखिम, जिससे हेमंत सोरेन का रुतबा कम हो और पार्टी सुप्रीमों के तौर पर उनके कद में किसी तरह की कमी आये। JMM को ये बखूबी पता था कि अगर दुमका में हेमंत सोरेन की हार होती, तो ये सिर्फ एक सीट की हार नहीं कहलाती, बल्कि पूरे सोरेन परिवार, पूरी पार्टी और झारखंड सरकार की हार कहलाती।

BJP की स्ट्रेटजी में फंस गयी JMM
दरअसल भाजपा ने झामुमो पर बाउंसर मारते हुए पहले तो सीता सोरेन को अपनी पार्टी में शामिल कराया और फिर उन्हें दुमका से प्रत्याशी घोषित कर दिया। ये दांव सिर्फ दुमका सीट के जीतने का नहीं था, क्योंकि इससे पहले भी वहां से भाजपा ही जीती थी, लेकिन भाजपा दूसरी बार भी सीता सोरेन के बगैर जीत जाती, तो कोई हैरत की बात नहीं थी। दरअसल BJP का दांव था कि वो सोरेन परिवार को चोट करे। अगर दुमका से सोरेन परिवार का कोई उम्मीदवार बने, तो सीता सोरेन उन्हें हराकर ये साबित करे, कि दुमका में सोरेन परिवार का दबदबा खत्म हो गया है। शिबू सोरेन की विरासत को हेमंत नहीं बल्कि दुर्गा सोरेन की पत्नी आगे बढ़ायेगी, वो भी झामुमो से नहीं बल्कि बीजेपी से…।

सीता सोरेन नहीं होती, तो हेमंत लड़ते चुनाव
राजनीति के जानकार मानते हैं कि झामुमो का दुमका से दांव इसलिए फेल हुआ है, क्योंकि वहां से भाजपा ने सीता सोरेन को उतार दिया है। अगर पिछली बार की तरह सुनील सोरेन ही प्रत्याशी होते, तो निश्चित ही हेमंत सोरेन मैदान में उतरते। इसके पीछे की बड़ी वजह ये कही जा रही है कि तब सुनील सोरेन और हेमंत सोरेन में सिर्फ जातिगत वोट बैंक का ही बंटवारा होता, लेकिन सीता सोरेन की उम्मीदवारी के बाद फैक्टर पूरी तरह से बदल गया, क्योंकि तब सिर्फ झामुमो का सिर्फ जातिगत वोट बैंक ही नहीं बंट रहा है, बल्कि सोरेन परिवार का अपना जनाधार भी बंट रहा था, जो सीता सोरेन के फेवर में ज्यादा दिख रहा था।

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