पवित्र पर्व रक्षाबंधन का बहनें वर्ष भर इंतजार करती हैं। राखी का पर्व सावन की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। बहनें इस दिन अपने भाइयों के कलाई में राखी बांधती हैं। इसके बदले में भाई अपनी बहन की सदैव रक्षा करने का वचन देता है। हमारे जीवन में कई रिश्ते होते हैं लेकिन भाई बहन का रिश्ता परम पवित्र होता है।

पंडित के मुताबिक, 11 अगस्त को भद्रा है। इसलिए 11 अगस्त की रात आठ बजकर 26 मिनट से 11 बजकर 43 मिनट तक बहनें राखी बांध सकती है। इस समय के बाद राखी बांधना निषेध है। दूसरे दिन यानि 12 अगस्त को सुबह पांच से सात बजकर 18 मिनट तक राखी बांधी जाएगी। इसके बाद भी 12 अगस्त को उदयातिथि में दिनभर राखी बांधी जा सकती है।

भविष्य पुराण में वर्णित है कि जब देवता और दानवों में युद्ध शुरू हुआ तब देवताओं पर दानव हावी हो रहे थे। तब इंद्र घबरा गए। उन्‍होंने भगवान बृहस्पति के पास पहुंचकर अपनी परेशानी बताई। उस समय इंद्र की पत्नी इंद्राणी ये सब वाक्या सुन रहीं थीं। इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

उधर रक्षा बंधन के तार रानी कर्णावती से भी जुड़े हुए हैं। जब मध्यकालीन युग में मुस्लिम और राजपूतों के बीच युद्ध संघर्ष चल रहा था। उस वक्त चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने बहादुरशाह और प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता नहीं निकल रहा था। तब हुमायुं को राखी भेजी थी। हुमायुं ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दिया।

रक्षा बंधन की कहानी महाभारत से भी जुड़े हैं। भगवान कृष्ण ने राजा शिशुपाल का वध किया था। उस समय भगवान के बाएं हाथ की उंगली से रक्त (खून) बहने लगा। यह देख द्रोपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर भगवान की उंगली में बांध दिया। यही से भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन बना लिया। इसी दिन से लोग रक्षाबंधक का पर्व मनाने लगे।

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