दिशोम गुरु शिबू सोरेन: झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनने का सपना क्यों रह गया अधूरा, जानिए इसके पीछे की सच्चाई

Dishom Guru Shibu Soren: Why the dream of becoming the first Chief Minister of Jharkhand remained unfulfilled, know the truth behind it

रांची: झारखंड आंदोलन के प्रणेता, दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन के बाद उनकी जीवन यात्रा के कई अनसुने और महत्वपूर्ण किस्से एक-एक कर सामने आ रहे हैं। ऐसा ही एक प्रसंग है, जब झारखंड बनने के बाद भी वह राज्य के पहले मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। जबकि झारखंड आंदोलन में उनकी केंद्रीय भूमिका रही थी और जनमानस की भी यही चाहत थी कि नया राज्य बनने पर नेतृत्व की बागडोर उन्हीं के हाथों में दी जाए।

15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ और पहले मुख्यमंत्री बने भाजपा के बाबूलाल मरांडी। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों शिबू सोरेन इस पद से वंचित रह गए?

झारखंड गठन के समय की राजनीतिक गणित

 

2000 के फरवरी में बिहार विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसके आधार पर ही झारखंड के लिए 81 विधानसभा सीटों का निर्धारण हुआ। इन सीटों में भाजपा के पास 32, राजद के पास 17, झामुमो के पास 12, कांग्रेस के पास 9 और जेडीयू के पास 7 सीटें थीं। भाजपा और जेडीयू ने मिलकर कुल 39 सीटें जुटाईं और कुछ निर्दलीयों व समता पार्टी के समर्थन से बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया।

इस प्रकार एनडीए ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाकर झारखंड में सरकार बना ली। वहीं झामुमो के पास बहुमत से बहुत दूर केवल 12 सीटें थीं, जिससे शिबू सोरेन के लिए मुख्यमंत्री बनना संभव नहीं हो पाया।

बीजेपी और झामुमो के बीच की खींचतान

 

शिबू सोरेन ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से भी मुलाकात की थी, लेकिन भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से इनकार कर दिया और बाबूलाल मरांडी को अपना चेहरा घोषित किया।

बीजेपी ने झामुमो को सरकार में शामिल करने का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन दिशोम गुरु को सिर्फ मुख्यमंत्री पद चाहिए था, जिसे नकारे जाने पर उन्होंने एनडीए से दूरी बनाए रखी।

बाद के वर्षों में मुख्यमंत्री बनने के मौके

शिबू सोरेन को पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन 10 दिन में ही बहुमत सिद्ध न कर पाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा। 2008 और 2009 में वे दो बार और मुख्यमंत्री बने, लेकिन दोनों बार कार्यकाल बहुत अल्पकालीन रहे।

दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सपना था कि झारखंड बनने के बाद वे उसके पहले मुख्यमंत्री बनें। लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों और आंकड़ों की कमी ने उनका यह सपना अधूरा छोड़ दिया। बावजूद इसके, उन्होंने झारखंड की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी और आज उनके बेटे हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं।

शिबू सोरेन झारखंड आंदोलन का चेहरा, आदिवासी अस्मिता के प्रतीक और सामाजिक न्याय के संघर्ष की मिसाल बने रहेंगे। उनका योगदान अमर रहेगा।

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