BSNL उस वह कंपनी है जिसने आम लोगों को मोबाइल फोन पहुंचाया । साल 2000 में शुरू हुई इस कंपनी ने पहले गांव फिर मोहल्ले और आखिर में घरों तक मोबाइल पहुंचाया है । इस वक्त कंपनी अपने वजूद को बचाने के लिए जूझ रही है। सरकार ने कंपनी को बचाने के लिए राहत पैकेज का भी ऐलान किया है। लेकिन बीएसएनएल कर्मचारी सरकार के एक फैसले का विरोध कर रही है।

कंपनी के पुराने मामले में एक नई अपडेट आई है अक्टूबर 2000 में शुरू होने वाली बीएसएनएल इन दिनों खुद को बचाने में लगी हुई हैं। बीएसएनएल कर्मचारी देश भर में केंद्र सरकार की पॉलिसी का विरोध कर रहे हैं। यह विरोध AUAB के तहत हो रहा है,जो बीएसएनएल के मुख्य यूनियन और संघठन का अंब्रेला ऑर्गेनाइजेशन है।

आखिर क्यों हो रहा है सरकार के फैसले का विरोध।

AUAB महाराष्ट्र के अध्यक्ष रंजन दानी का कहना है कि उनकी संस्था 14,917 बीएसएनएल टावर्स को प्राइवेट फर्म्स के हाथ में देने के सरकारी फैसले का विरोध कर रही है । उन्होंने कहा कि ‘ आम बजट 2021- 22 में सरकार ने कहा था कि 40 हजार करोड़ रुपया BSNL और MTNL के मोबाइल टावर और ऑप्टिक फाइबर प्राइवेट कम्पनी को देकर इकट्ठा करेंगे।’

अपने ही टावर के लिए देने होंगे पैसे

इसका मतलब BSNL के 14,917टावर्स प्राइवेट कंपनियों को देकर सरकार 40हजार करोड रुपए इकट्ठा करना चाहती है। इससे बीएसएनएल की स्थिति को पहले से बेहतर करने की योजना है। लेकिन इन टॉवर्स को प्राइवेट कंपनियों को देने का मतलब है कि इनको इस्तेमाल करने के लिए बीएसएनल को ही पैसे देने पड़ेंगे।

सरकार बीएसएनल को वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए सरकार ने 1. 64 लाख करोड रुपए के तहत राहत पैकेज का ऐलान किया है। इससे अरसे से पड़ी BSNL 4G सर्विस शुरू हो सकेगी। साथ ही केंद्र सरकार बीएसएनल के घाटे को भी कम करने की कोशिश कर रही है। बीएसएनएल की घाटे पर नजर डालें तो कंपनी एक दशक से ज्यादा वक्त से नुकसान में चल रही है । साल 2009-10 में कंपनी को पहली बार घाटा हुआ था और यह सिलसिला अभी तक चला रहा है।

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