इन 3 मंदिरों से प्रसाद घर लाना सख्त मना है … नंबर 2 का सच जानकर कांप उठे भक्त….
क्या आप भी कभी भूल से ले आए हैं प्रसाद? जानिए इसके पीछे की रहस्यमयी मान्यताएं...

भारत, 2025: भारत में मंदिर केवल पूजा-पाठ का स्थान नहीं होते, बल्कि रहस्यों और आस्थाओं का केंद्र भी होते हैं। हर मंदिर की अपनी एक परंपरा, नियम और मान्यता होती है — लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि प्रसाद, जिसे हम ईश्वर का आशीर्वाद मानते हैं, कहीं से घर नहीं ले जाया जा सकता?
हां, भारत में तीन ऐसे रहस्यमय मंदिर हैं जहां से प्रसाद घर ले जाना सिर्फ मना ही नहीं, बल्कि माना जाता है कि इससे भारी अनिष्ट भी हो सकता है! आइए जानते हैं इन रहस्यमय मंदिरों के बारे में:
1. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर (दौसा, राजस्थान)
यह मंदिर हनुमान जी के बाल रूप “बालाजी” को समर्पित है।
मान्यता है कि यहां पर भूत-प्रेत बाधा और ऊपरी साया से मुक्ति मिलती है।
यहां का प्रसाद विशेष विधियों से बनाया जाता है और इसे सिर्फ मंदिर में ही अर्पित किया जाता है।
सख्त नियम:
कोई भी भक्त प्रसाद को खा या साथ ले नहीं जा सकता।
मंदिर से कोई सुगंधित या खाने की वस्तु बाहर नहीं ले जानी चाहिए।
मान्यता है कि ऐसा करने से नेगेटिव ऊर्जा आपके साथ घर जा सकती है।
2. सोनापहरी मंदिर (बगोदर, गिरिडीह, झारखंड)
यह 100 साल पुराना शक्तिपीठ माना जाता है।
यहां जो भी प्रसाद चढ़ाया जाता है, उसे सिर्फ मंदिर परिसर में ही खाया जा सकता है।
रहस्यमयी मान्यता:
अगर कोई व्यक्ति गलती से भी प्रसाद को घर ले जाए, तो रास्ते में ही दुर्घटना हो सकती है।
कई ऐसे किस्से सुनने को मिले हैं जिनमें प्रसाद ले जाने वाले श्रद्धालुओं को अचानक दुर्घटनाएं या अनहोनी का सामना करना पड़ा है।
स्थानीय लोग इस नियम को कभी नहीं तोड़ते।
3. खुट्टा बाबा मंदिर (ऊर्दाना, झारखंड)
यह मंदिर पुरुषों के लिए खुला है, महिलाओं की एंट्री वर्जित है।
यहां भी प्रसाद घर ले जाने की सख्त मनाही है।
माना जाता है कि ऐसा करने से घर में क्लेश, अशांति और दुर्भाग्य प्रवेश कर सकता है।
श्रद्धालु केवल मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर वहीं खा सकते हैं, साथ ले जाने की इजाज़त नहीं है।
प्रसाद क्यों नहीं ले जा सकते?
प्रसाद को आमतौर पर ईश्वर का आशीर्वाद माना जाता है — लेकिन कुछ विशेष मंदिरों में यह ऊर्जात्मक माध्यम भी होता है। इन मंदिरों में प्रसाद से जुड़ी ऊर्जा इतनी गहन होती है कि उसे घर ले जाने से वह आपके परिवेश पर प्रभाव डाल सकती है, विशेष रूप से तब जब वह स्थान उस ऊर्जा के अनुकूल न हो।
इन मंदिरों की परंपराएं और नियम हजारों वर्षों की धार्मिक आस्था और अनुभव से जुड़ी हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम केवल श्रद्धा नहीं, समझदारी से भी काम लें। यदि कहीं प्रसाद ले जाना मना है, तो उसे अवश्य मानें — क्योंकि विश्वास की शक्ति जितनी बड़ी है, उतना ही बड़ा उसका उल्लंघन भी हो सकता है।