बड़ी खबर : इंश्योरेंस क्लेम को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, बीमा कंपनियां अब नहीं दिखा पायेगी चलाकी, करना होगा भुगतान…

Big news: High Court's big decision regarding insurance claim, insurance companies will no longer be able to show fraud, will have to make payment...

Highcourt News : हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया कि मेडिक्लेम और एक्सीडेंट क्लेम दोनों अलग-अलग अधिकार हैं और बीमा कंपनियां किसी भी व्यक्ति के एक्सीडेंट क्लेम को इस आधार पर कम नहीं कर सकतीं कि उसे पहले से मेडिक्लेम से भुगतान मिल चुका है। बाम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला उन लाखों लोगों के लिए राहत भरा है जो अपनी मेहनत की कमाई से बीमा प्रीमियम भरते हैं और कठिन समय में अपने हक से वंचित रह जाते हैं।

 

क्या है पूरा मामला?

यह केस New India Assurance Company बनाम एक क्लेमेंट के बीच का था। मामला इस प्रकार था:

• एक व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल हुआ।

• उसने इलाज कराया, जिसकी लागत उसकी मेडिक्लेम पॉलिसी से कवर हो गई।

• इसके बाद, उसने मोटर एक्सीडेंट क्लेम किया, ताकि उसे मुआवजा मिल सके।

• बीमा कंपनी ने यह कहते हुए क्लेम देने से इनकार कर दिया कि उसे पहले ही मेडिक्लेम से भुगतान मिल चुका है।

बीमा कंपनी का तर्क था कि अगर मेडिकल खर्च की भरपाई पहले से हो चुकी है, तो एक्सीडेंट क्लेम में इसे दोबारा देना “डबल कंपन्सेशन” होगा, जो उचित नहीं है।

 

बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने इस तर्क को पूरी तरह गलत ठहराया। कोर्ट ने कहा कि:

• मेडिक्लेम और मोटर एक्सीडेंट क्लेम दो अलग-अलग चीजें हैं। मेडिक्लेम पॉलिसी एक निजी अनुबंध (Contract) के तहत दी जाती है, जबकि मोटर एक्सीडेंट क्लेम कानूनी अधिकार (Legal Right) है।

• बीमा कंपनियों को यह हक नहीं कि वे मेडिक्लेम से मिले पैसे को एक्सीडेंट क्लेम से घटाएं।

• जो लोग दूरदर्शिता दिखाकर मेडिक्लेम लेते हैं, उनके साथ अन्याय नहीं किया जा सकता।

यह मामला वर्षों से विवादित था, क्योंकि अलग-अलग अदालतों के फैसले अलग-अलग थे। कुछ मामलों में ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने बीमा कंपनियों का पक्ष लिया था, जबकि कुछ में क्लेमेंट को पूरा मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। इसी कारण यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच को भेजा गया था ताकि एक स्पष्ट निर्णय आ सके।

 

बीमा कंपनियों की चालाकी कैसे उजागर हुई?

बीमा कंपनियां अक्सर “डबल कंपन्सेशन” का तर्क देकर पैसा बचाने की कोशिश करती हैं, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि:

• मेडिक्लेम पॉलिसी और एक्सीडेंट क्लेम अलग-अलग आधार पर मिलते हैं।

• अगर बीमा कंपनियां ऐसा करने लगें, तो उन्हें अनुचित लाभ मिलेगा, जो कानून के खिलाफ है।

• बीमा कंपनियां अब इस बहाने से लोगों को उनका हक नहीं मार सकतीं।

 

क्लेम करते समय किन बातों का ध्यान रखें?

अगर आपको कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े, तो इन 3 बातों को हमेशा याद रखें:

1. मेडिकल खर्च और एक्सीडेंट क्लेम, दोनों का हक रखें। अगर बीमा कंपनी आपको बहाने देकर भुगतान देने से इनकार करे, तो बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले का हवाला दें।

2. अपने क्लेम के पूरे डॉक्यूमेंट्स तैयार रखें। हॉस्पिटल के बिल, इंश्योरेंस पेपर्स, पुलिस रिपोर्ट – सभी कागजात सुरक्षित रखें ताकि आपको पूरा भुगतान मिल सके।

3. अगर बीमा कंपनी पैसे देने से इनकार करे, तो मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) में केस दर्ज करें।

 

क्यों है यह फैसला इतना महत्वपूर्ण?

अगर यह फैसला नहीं आता, तो बीमा कंपनियां इसी बहाने से लाखों लोगों के एक्सीडेंट क्लेम काट सकती थीं। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि:

• मेडिक्लेम और एक्सीडेंट क्लेम दो अलग-अलग अधिकार हैं।

• बीमा कंपनियां अब अनुचित लाभ नहीं उठा सकेंगी।

• जो लोग मेडिक्लेम लेते हैं, उन्हें दोबारा नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा।

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