Mukhtar Ansari ki maut: मुख्तार अंसारी को पूर्वांचन का सबसे बड़ा डॉन कहा जाता है। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि उसने अपना रौब जमाया, बल्कि इसलिए क्योंकि पुलिसवाले भी उसके नाम से खौफ खाते थे। डर से कुछ आईपीएस ने तबादले करवा लिये, तो कुछ ने नौकरी ही छोड़ दी। ऐसे ही एक अफसर थे शैलेंद्र सिंह, जिन्हें अपनी नौकरी मुख्तार के डर से छोड़नी पड़ी।

गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी की मौत पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने बताया, ”20 साल पहले साल 2004 में मुख्तार अंसारी का साम्राज्य चरम पर था। वह उन इलाकों में खुली जीप में घूमता था जहां कर्फ्यू लगा हुआ था। उस समय मुख्तार से एक लाइट मशीन गन (LMG) बरामद की थी। मुख्तार से एलएमजी की वह पहली बरामदगी थी। उसके बाद आज तक कोई ऐसी रिकवरी नहीं हुई।

डीएसपी शैलेंद्र ने उसे आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) के तहत केस दर्ज किया। लेकिन मुलायम सरकार उसे किसी भी कीमत पर बचाना चाहती थी। मुख्तार ने अधिकारियों पर दबाव डाला, आईजी-रेंज, डीआईजी और एसपी-एसटीएफ का तबादला कर दिया गया। यहां तक कि डीएसपी को 15 के भीतर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। हालांकि डीएसपी ने इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन इस्तीफे में उन्होंने पूरी राम कहानी लिख डाली। साथ ही इस्तीफे में अपना कारण जनता के सामने भी रख दिया।

डीएसपी का कहना था कि उनकी जान को खतरा था। नौकरी भी चली गयी थी। सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद अगर कहीं प्राइवेट जॉब भी करता तो कंपनी पर डीएसपी को निकलवाले के लिए फोन आ जाता था। किराए पर मकान नहीं मिलता था। रात में सामान कहीं रख दिया तो सुबह खाली करना पड़ता था। पुलिस अधिकारी शैलेंद्र सिंह ने बताया, ‘जनवरी 2004 की बात है. तब वह वाराणसी में एसटीएफ चीफ थे. शासन-प्रशासन के अनुमति से फोन सुनने होते थे. इसी दौरान सामने आया कि, मुख्तार अंसारी आर्मी के किसी भगोड़े से लाइट मशीन गन खरीदना चाहता है. अंसारी इसे खरीदना इसलिए चाहता था कि क्योंकि वह कृष्णानंद राय को मारना चाहता था. कृष्णानंद की बुलेट प्रूफ गाड़ी को रायफल नहीं भेद पाती, लेकिन लाइट मशीन गन से उस पर अटैक भेद देती. खैर हमने उसे पकड़ा, रिकवर किया और POTA लगाने की कार्रवाई की।

पूर्व DSP ने कहा, ‘ उस दौरान यूपी अल्पमत वाली मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. सरकार को मुख्तार अंसारी का समर्थन था. इसलिए सरकार ने दबाव बनाना शुरू किया कि मुख्तार अंसारी का नाम इस केस से निकालना है, लेकिन मैंने इनकार कर दिया. विवेचना में से नाम हटाने को कहा गया, लेकिन ये भी संभव नहीं था. ये सब रिकॉर्ड में था, तो इसे कैसे हटाया जा सकता था. फिर दबाव आया कि विवेचना दूसरे अधिकारी को सौंप देते हैं ताकि केस कमजोर हो जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं सका तो अंत में मुझ पर ही आरोप लगे और मुझे 15 दिन बाद सरकारी नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा था.’

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