रांची में आदिवासी शक्ति का महाजुटान : 17 अक्टूबर को कुड़मी के एसटी दर्जे के खिलाफ होगा बड़ा प्रदर्शन, देखें पूरी खबर
Grand gathering of tribal power in Ranchi: A big protest will be held on October 17 against the ST status of Kudmi, see the full news.

कुड़मी को एसटी दर्जा के मांग के विरोध में 17 अक्टूबर को आदिवासी हुंकार महारैली का आयोजन होगा. प्रभात तारा मैदान में महारैली होगी. इस विषय पर आदिवासी संगठन के प्रतिनिधि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात करेंगे. आदिवासी बचाओ मोर्चा के अलावा कई अन्य आदिवासी संगठनों ने मिलकर ये फैसला किया है.
महारैली के आयोजन को अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद, आदिवासी महासभा, आदिवासी जनपरिषद, झारखंड आदिवासी समन्वय समिति, बेदिया विकास परिषद, केंद्रीय सरना समिति, राजी पड़हा प्रार्थना सभा, खरवार भोक्ता समाज और भूमिज मुंडा सहित अन्य संगठनों का समर्थन हासिल है.
एसटी दर्जा देने की मांग को लेकर 20 सितंबर को कुड़मी समाज के लोगों ने झारखंड, बंगाल और ओडिशा में रेल टेका-डहर छेका आंदोलन किया था. इस आंदोलन को आजसू पार्टी और जेएलकेएम का समर्थन हासिल था. इस आंदोलन के विरोध में आदिवासी संगठन के लोगों ने 17 सितंबर को बाइक रैली का आयोजन किया था.
कुड़मी समाज के लोग भी राष्ट्रपति से मिलेंगे
इधर, कुड़मी को एसटी दर्जा देने की मांग कर रहे संगठनों ने भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मुलाकात करने का कार्यक्रम तय किया है. आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी कहा है कि वह प्रधानमंत्री के सामने कुड़मी समाज की जरूरी मांग को रखेंगे. आजसू पार्टी के वरीय नेता डॉ. लंबोदर महतो ने कहा था कि एसटी दर्जा की मांग करने कुड़मी समाज का संवैधानिक अधिकार है.
डुमरी विधायक जयराम महतो की पार्टी जेएलकेएम कभी इस आंदोलन को समर्थन हासिल है. इस वजह से जेएलकेएम की फायर ब्रांड आदिवासी नेत्री निशा भगत ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
हजारीबाग के मांडू विधानसभा सीट से आजसू पार्टी के एकमात्र विधायक निर्मल महतो उर्फ तिवारी महतो ने चरही रेलवे स्टेशन पर रेल टेका-डहर छेका आंदोलन की अगुवाई की थी.
कुड़मी को एसटी दर्जा की मांग का पुरजोर विरोध
आदिवासी संगठनों की ओर से कुड़मी को एसटी दर्जा देने की मांग का विरोध हो रहा है. आदिवासी नेता ग्लैडसन डुंगडुंग और अजय तिर्की लगातार इसका विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि कुड़मी आदिवासी नहीं हैं. केवल आरक्षण का लाभ लेने के लिए ऐसी मांग उठाई जा रही है जो राजनीति से प्रेरित है.
आदिवासियों का तर्क है कि वे आदिकाल से जंगल के निवासी हैं जबकि कुड़मियों की सभ्यता नदी घाटियों में विकसित हुई. वे परंपरागत रुढ़िवादी समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिए उनको एसटी दर्जा की मांग असंवैधानिक है.
कुड़मी को एसटी दर्जा की मांग पर बड़े दलों ने साधी चुप्पी
इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चुप्पी साध रखी है. बीजेपी ने गेंद, हेमंत सरकार के पाले में डालने की कोशिश की है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता अजय शाह ने कहा कि सरकार को दोनों समुदायों के बीच समन्वय स्थापित करके इसका समाधान निकालना चाहिए. ध्यान रखना चाहिए कि दोनों समुदायों में वैमनस्यता ना हो. उनके बीच सांस्कृतिक टकराव से भी बचना होगा.
झामुमो के सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि 2004 में अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्री रहते पातर और मुंडा को एसटी दर्जा दिया गया. कुड़मियों को भी दिया जा सकता था. 2019-24 तक अर्जुन मुंडा केंद्रीय जनजातीय मंत्री थे और चाहते तो इसका समाधान निकाल सकते थे.
हालांकि, अर्जुन मुंडा ने 2004 में कुड़मी को एसटी दर्जा देने की सिफारिश की थी लेकिन इसे खारिज किया गया था.