झारखंड: हेमंत सरकार और राजभवन में फिर हो सकता है टकराव, कैबिनेट के इस फैसले से राज्यपाल की भूमिका हो जायेगी खत्म

Jharkhand: There may be a conflict again between Hemant government and Raj Bhavan, this decision of the cabinet will end the role of the governor

रांची। झारखंड में सरकार और राजभवन में एक बार फिर टकराव शुरू हो सकता है। दरअसल हेमंत सोरेन सरकार ने उच्च शिक्षा व्यवस्था में बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव करते हुए ‘झारखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक 2025’ को कैबिनेट की मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के लागू होने के बाद राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति, प्रतिकुलपति और वित्तीय सलाहकार जैसे अहम पदों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से लेकर राज्य सरकार को सौंप दिया गया है।

 

जाहिर है ये फैसला नये विवाद को जन्म दे सकता है। सरकार का यह कदम जहां विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में उठाया गया बताया जा रहा है, वहीं इससे राज्य की सियासत में हलचल भी तेज हो गई है। राज्यपाल बनाम सरकार की संभावित टकराव की आशंका ने राजनीतिक विश्लेषकों और शिक्षा जगत को दो हिस्सों में बांट दिया है।

 

अब एक कानून से चलेंगे राज्य के 13 विश्वविद्यालय

इस विधेयक के माध्यम से झारखंड के सभी 13 विश्वविद्यालयों में एक समान नीतियां और प्रशासनिक संरचना लागू की जाएगी। इसका मकसद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल शिक्षण, ऑनलाइन प्रणाली और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना है। अब तक बिखरी हुई व्यवस्थाओं को एक सूत्र में पिरोने के लिए यह सिंगल अंब्रेला एक्ट लाया गया है।

 

झारखंड विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन

सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि अब विश्वविद्यालयों में कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, शिक्षक, प्राचार्य व शिक्षकेतर कर्मियों की नियुक्ति झारखंड राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के माध्यम से की जाएगी। इससे पहले ये नियुक्तियां जेपीएससी के माध्यम से होती थीं।

 

राज्यपाल की भूमिका पर नई बहस

संविधान विशेषज्ञों की मानें तो राज्यपाल का विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में कार्य करना एक वैधानिक भूमिका है, न कि संवैधानिक। वहीं, बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी राज्य सरकारें विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका को सीमित करने वाले विधेयक ला चुकी हैं, जिन पर कानूनी विवाद भी हुए हैं।

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