झारखंड: मां स्कूल में रसोईया, भाई मजदूर…अब, डिलेवरी ब्वाय से झारखंड में अफसर बनेंगे राजेश, जानिये कैसे मिली सफलता…

Jharkhand: Mother is a cook in school, brother is a labourer... Now, Rajesh will become an officer in Jharkhand from a delivery boy, know how he got success...

Jharkhand Topper Rajesh rajak: छोटे सपने देखने वालों की भीड़ में जब कोई बड़ा सपना पालता है तो या तो लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं या उसकी हिम्मत पर सवाल करते हैं। लेकिन कोई-कोई ऐसा भी होता है, जो न सवालों की परवाह करता है, न हालात की। वह सिर्फ चलता है… चुपचाप… अपने संघर्षों को सीने में लिए… और फिर एक दिन, पूरे समाज को यह दिखा देता है कि ‘असली अफसर वही होता है जो पहले अपने जीवन की लड़ाई जीतता है।’यह कहानी है — झारखंड प्रशासनिक सेवा में चयनित राजेश रजक की।

 

सपने की जमीन… गरीबी की रेखा से नीचे

हजारीबाग जिले के बरकट्ठा प्रखंड के सुदूर गांव केंदुआ में जन्मा राजेश, उस भारत का चेहरा है जिसे आज भी सुविधाओं से कोसों दूर रखा गया है। जहां पढ़ाई का मतलब होता है – सरकारी स्कूल की टूटी बेंच, और भविष्य का मतलब – खेत, मजदूरी या किसी शहर में छोटा-मोटा काम। राजेश का बचपन भी इन्हीं सीमाओं में बीता।12वीं कक्षा में थे जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। घर में कमाने वाला कोई नहीं था। मां एक सरकारी स्कूल में रसोईया थीं और भाई मुंबई में मजदूरी करते थे। ऐसे में पढ़ाई जारी रखना, एक सपने से ज़्यादा एक जंग बन गया।

 

कंधे पर बैग, सिर में ख्वाब और दिल में आग

जीवन से लड़ते हुए, राजेश ने एक प्राइवेट स्कूल में ₹6000 महीने की नौकरी की और किसी तरह पढ़ाई पूरी की। लेकिन सपना अभी बाकी था — “अफसर बनना है…”। रांची आए तो हालात और कठिन हो गए। अब पेट पालने के लिए डिलीवरी बॉय की नौकरी करनी पड़ी। सुबह से रात तक सड़कों पर दौड़ते थे, और रात को नींद की जगह किताबों में डूब जाते थे। किसी दिन खाना नहीं मिलता था, लेकिन सपनों की भूख उन्हें सोने नहीं देती थी।

 

हार नहीं मानी, क्योंकि मां की आंखों में उम्मीद थी

छठे JPSC में प्रीलिम्स निकाला, लेकिन मेंस में असफल हो गए। यह वो मोड़ था, जहाँ 90% लोग टूट जाते हैं। लेकिन राजेश के पास टूटने का विकल्प नहीं था। क्योंकि मां आज भी अपने बेटे को दुनिया का सबसे बड़ा इंसान मानती थीं। उनकी आंखों में जो चमक थी, वही राजेश का हौसला बन गई।राजेश ने डिलीवरी की नौकरी छोड़ दी और खुद को पूरी तरह परीक्षा की तैयारी में झोंक दिया। कोई कोचिंग नहीं, कोई गाइड नहीं… सिर्फ खुद पर भरोसा और मां की दुआ।

 

और अब… गांव के उस कमरे से निकलकर अफसर की कुर्सी तक

271वीं रैंक, झारखंड जेल सेवा में चयन — राजेश अब अफसर बन चुके हैं। लेकिन उनकी असली पहचान यह नहीं कि वो सरकारी सेवा में आए हैं, बल्कि यह है कि उन्होंने किसी भी हालात को अपने सपनों के रास्ते में रुकावट नहीं बनने दिया।आज जब उनकी मां जानकी देवी की आंखों में आंसू हैं, तो वो दर्द के नहीं हैं — वो वो आंसू हैं जो सालों की तपस्या और उम्मीद से फूटे हैं। जब वो कहती हैं, “मेरा बेटा आज अफसर बन गया…” तो वो सिर्फ अपने बेटे की नहीं, बल्कि हर उस मां की जीत बोल रही होती हैं जिसने गरीबी में भी बेटे को सपना देखने दिया।

 

राजेश की आवाज आज हर संघर्षरत युवा से कह रही है

“अगर डिलीवरी बॉय होकर भी कोई अफसर बन सकता है, तो तुम्हारे सपने भी सच हो सकते हैं। हिम्मत मत हारो। हार सिर्फ तब होती है, जब इंसान खुद मान ले कि अब मुमकिन नहीं। वरना हर तूफान भी उस नाव का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जिसमें बैठा ख्वाबों का नाविक डूबने से इंकार कर दे।”

Related Articles