कहानी उस किसान की, जिसने मजबूरी में खुद को बैल बना लिया, अब छू गया देश का दिल, मंत्री ने खुद भरा कर्जा, तो तोहफे में हल-बैल और पैसे की हुई बारिश

The story of the farmer who turned himself into a bull out of compulsion has now touched the heart of the nation. The minister himself paid off the debt and there was a shower of money and plough and bulls as gifts.

Viral News : कभी तस्वीरें सिर्फ देखकर आंखें नम हो जाती हैं…. और कभी कुछ तस्वीरें हमें झकझोर कर सोचने पर मजबूर कर देती हैं। ऐसी ही एक तस्वीर बीते दिनों सोशल मीडिया में वायरल हुई थी, जिसमें एक किसान के पास बैल नहीं था, तो खुद बैल बनकर खेत जोतने लगा। मामला महाराष्ट्र के लातूर जिले के हडोल्टी गांव की है। वीडियो वायरल होने के बाद पूरे देश का ध्यान उस पर गया।

यहां देखें वीडियो 👇 👇 👇

75 वर्षीय किसान अंबादास पवार और उनकी पत्नी को जब खेत जोतने के लिए बैल नहीं मिले, तो दोनों ने खुद ही हल की जुताई शुरू कर दी।यह दृश्य केवल एक किसान की मजबूरी नहीं, बल्कि उन लाखों किसानों का प्रतीक बन गया जो आज भी संसाधनों की कमी के बीच मेहनत के बूते ज़मीन से सोना उगाने की कोशिश करते हैं।

 

जब बैल नहीं थे, तो बन गए बैल खुद

अंबादास पवार के पास सिर्फ 2.5 एकड़ ज़मीन है। खेती के लिए बैल या ट्रैक्टर किराए पर लेना संभव नहीं था, क्योंकि उनकी दैनिक लागत लगभग ₹2500 होती है — इतनी बड़ी रकम एक सीमांत किसान के लिए नामुमकिन है। ऐसे में अंबादास पवार और उनकी पत्नी ने वो कर दिखाया जिसे देखकर हर आंख नम हो गई — दोनों ने खुद को हल में जोत लिया।

 

सोशल मीडिया पर तूफान, संवेदना से भर उठा देश

इस मार्मिक दृश्य का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। लाखों लोगों ने इसे देखा, साझा किया और गहरी सहानुभूति जताई। वीडियो ने न केवल आम जनता का, बल्कि सरकार और सामाजिक संगठनों का भी ध्यान खींचा।

 

राज्य मंत्री बाबासाहेब पाटिल ने खुद चुकाया कर्ज

राज्य सरकार के मंत्री बाबासाहेब पाटिल ने किसान पवार से व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया और उनका ₹42,500 का कर्ज चुकाया। यह कर्ज हाडोल्टी बहुउद्देश्यीय सहकारी समिति से लिया गया था। मंत्री ने गांव में जाकर स्वयं यह राशि संस्था को दी और किसान को कर्जमुक्त कर क्लियरेंस सर्टिफिकेट दिलवाया।

 

तोहफे में मिले बैल और ₹1 लाख की मदद

क्रांतिकारी शेतकरी संगठन की लातूर इकाई ने अंबादास पवार को एक जोड़ी बैल भेंट किए — ताकि उन्हें फिर कभी खुद को बैल ना बनना पड़े। इन बैलों को पूरे गांव ने मिलकर उनके घर तक ढोल-नगाड़ों के साथ पहुंचाया।तेलंगाना के एक चैरिटेबल ट्रस्ट ने भी पवार से मुलाकात कर उन्हें ₹1 लाख की सीधी आर्थिक सहायता दी। यह न केवल एक किसान की मदद थी, बल्कि समाज की उस भावना का भी प्रतीक है जो आज भी जीवित है।

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