झारखंड : पारा शिक्षकों की नाराजगी बाबूलाल पर भारी…हेमंत सरकार को घेरा….आदेश वापस लेने की मांग की!

Jharkhand: Para teachers' displeasure over Babulal...Hemant government surrounded...demanded withdrawal of order!

पारा शिक्षकों को हटाने से जुड़ी द फॉलोअप की खबर पर नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कड़ा संज्ञान लिया है। उन्होंने हेमंत सरकार से इस आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग की है। मरांडी ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल में ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से हज़ारों पारा शिक्षकों की नियुक्ति करवाई थी। उन्होंने याद दिलाया कि जब वर्ष 2000 में झारखंड का गठन हुआ था, उस समय लालू प्रसाद यादव के शासन का असर हर क्षेत्र पर था और झारखंड की शिक्षा व्यवस्था बेहद खराब स्थिति में थी।

उन्होंने कहा कि उस विकट परिस्थिति में उन्होंने श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू किए गए सर्व शिक्षा अभियान के तहत हज़ारों पारा शिक्षकों की नियुक्ति करवाई थी ताकि ग्रामीण और दूरदराज़ इलाकों में शिक्षा की रोशनी पहुंचाई जा सके।

मरांडी ने हेमंत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आज वही पारा शिक्षक, जो पिछले 25 वर्षों से समर्पित भाव से अपनी सेवा दे रहे हैं, उन्हें सेवा से हटाने का आदेश जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्राथमिक विद्यालयों में हज़ारों शिक्षक पद रिक्त हैं और बीते साढ़े पांच वर्षों में सरकार एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं कर पाई है। ऐसे में पारा शिक्षकों को हटाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।

उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से आग्रह किया कि इस निर्णय को तुरंत वापस लिया जाए और पारा शिक्षकों को नियमित वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाए।

क्या है पूरा मामला 
झारखंड के स्कूल शिक्षा विभाग ने हाल ही में एक अहम कार्रवाई की है, जिससे राज्यभर में लगभग 4000 पारा शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। इनमें से केवल 153 शिक्षक दुमका जिले से हैं, जबकि गिरिडीह में 269 और देवघर में 98 पारा शिक्षकों को अप्रैल 2025 से वेतन बंद करने का आदेश जारी किया गया है। सभी शिक्षकों को नोटिस भेजा गया है, जिसमें कहा गया है कि उनके द्वारा प्राप्त की गई डिग्री “अवैध” संस्थानों से है।
दोहरी जांच के बाद भी क्यों फर्जी?
साल 2001-03 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत गांवों में शिक्षा समितियों के जरिए पारा शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी, और तब न्यूनतम योग्यता मैट्रिक रखी गई थी। 2005 में योग्यता को इंटरमीडिएट तक बढ़ा दिया गया। हालांकि इसके बाद सरकार ने यह निर्देश जारी किया कि ऐसे शिक्षक जो किसी संस्थान से इंटर या उच्च शिक्षा कर रहे हों, उन्हें अवकाश मिलेगा, जिससे अधिकतर शिक्षकों ने नॉन-एटेन्डिंग संस्थानों से पढ़ाई पूरी की। इसमें प्रयाग महिला विद्यापीठ (उत्तर प्रदेश), हिंदी विद्यापीठ (इलाहाबाद) जैसी संस्थाओं से डिग्री ली गई।
शिक्षकों का कहना है कि विभाग ने खुद ही इन डिग्रियों को जांचा-परखा, वेतनमान भी लागू किया और फिर 2022 में जब शर्तें पूरी हो गईं, तब दोबारा सत्यापन की प्रक्रिया अपनाई गई। इस प्रक्रिया में फिर से उन्हीं संस्थानों से डिग्री की जांच की गई और इसके बाद परीक्षा लेकर उन्हें मंजूरी दी गई।

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