झारखंड में PESA कानून को लेकर बड़ा अपडेट! विधानसभा के मानसून सत्र में पेश होगा बिल, जानें क्या है इसके मायने!
Big update regarding PESA law in Jharkhand! The bill will be presented in the monsoon session of the assembly, know what it means!

झारखंड की राजधानी रांची में 21 मई को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई ट्राइबल एडवाइजरी कमिटी की बैठक में पेसा कानून पर चर्चा हुई.
चर्चा में यह बात सामने आई है कि जब तक झारखंड राज्य पंचायती राज अधिनियम में संशोधन नहीं होगा तब तक पेसा कानून नहीं बन सकेगा. इस बीच बैठक में द प्रोविजन ऑफ द म्यूनिसिपिलिटी एक्सटेंशन टू द शेड्यूल एरिया 2001 में संशोधन पर भी चर्चा नहीं की जा सकी. इसे मेसा कानून के नाम से जाना जाता है.
गौरतलब है कि 2023 में ही झारखंड में पेसा नियमावली का ड्रॉफ्ट तैयार हो चुका है लेकिन आज तक इसे कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिली. झारखंड में लंबे समय से पेसा कानून की मांग की जा रही है.
पेसा कानून को लेकर राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने भी बड़ी जानकारी दी है.
मानसून सत्र में पेसा कानून बिल लायेगी सरकार!
शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने कहा कि आगामी विधानसभा के मानसून सत्र में हमारी सरकार पेसा कानून लागू करने की दिशा में कदम उठाएगी. उन्होंने कहा कि पेसा कानून पर सभी पक्षों से संवाद करके आम सहमति बनाई जा रही है. यदि सभी पक्षों को संतुष्ट किए बिना पेसा कानून लागू कर दिया जाता है तो संभव है कि विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएगा इसलिए सरकार सबकी बात सुन रही है.
मंत्री रामदास सोरेन ने कहा कि सरकार का उद्देश्य है कि पेसा कानून सभी समुदायों के हित में इसलिए सबकी राय ली जा रही है.
झामुमो के चुनावी मेनिफेस्टो में पेसा का वादा था
गौरतलब है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2019 के विधानसभा चुनाव के समय अपने चुनावी मेनिफेस्टो में पेसा कानून लागू करने का वादा किया था. झामुमो सत्ता में भी आई और 2024 में दोबारा हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ है लेकिन पेसा कानून लागू नहीं किया जा सका है.
झारखंड में पेसा नियमावली का ड्राफ्ट साल 2021 में तैयार किया गया था.
15 अग्सत 2021 को सरकार ने घोषणा की थी कि वह राज्य में पेसा कानून को प्रभावी ढंग से लागू करेगी इसके लिए नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया गया है. सरकार ने आगे अलग-अलग जनसुनवाई और परामर्श बैठकों के माध्यम से आदिवासी समुदायों, सामाजिक संगठनों और विशेषज्ञो से सुझाव लेकर इस ड्राफ्ट को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया शुरू की थी.
अब कहा जा रहा है कि पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किए बिना पेसा कानून लागू नहीं किया जा सकता है.
पेसा नियमावली का ड्राफ्ट जुलाई 2023 में आया था
गौरतलब है कि झारखंड में पेसा (PESA) नियमावली का प्रारंभिक ड्राफ्ट जुलाई 2023 में प्रकाशित किया गया था, जिसे ‘झारखंड पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) नियमावली-2022’ कहा गया. इस ड्राफ्ट में ग्राम सभाओं की संरचना, अधिकार और कार्यप्रणाली से संबंधित विस्तृत प्रावधान शामिल थे, जैसे कि ग्राम सभा की अध्यक्षता पारंपरिक प्रमुखों द्वारा करना, ग्राम सभा की शक्तियों का विस्तार, और स्थानीय संसाधनों पर नियंत्रण.
24 सितंबर 2023 को झारखंड सरकार ने इस नियमावली को अंतिम रूप दिया, जिसमें प्राप्त आपत्तियों और सुझावों पर विचार किया गया.
अंतिम नियमावली में ग्राम सभाओं को और अधिक सशक्त बनाने के लिए प्रावधान किए गए, जैसे कि भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य करना, ग्राम सभा द्वारा अपराधों पर जुर्माना लगाने की शक्ति और पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की सूचना 48 घंटे के भीतर ग्राम सभा को देना.
हालांकि, मई 2025 तक पेसा नियमावली को विधिवत अधिसूचित नहीं किया गया है.
राज्य सरकार ने 10 जून 2025 तक आपत्तियाँ और सुझाव आमंत्रित किए हैं, ताकि अंतिम रूप से नियमावली को अधिसूचित किया जा सके.
संसद से दिसंबर 1996 में पारित हुआ था पेसा कानून
पेसा कानून 24 दिसंबर साल 1996 को संसद से पारित हुआ था.
इसका पूरा नाम पंचायत एक्सटेंशन टू द शेड्यूल एरिया एक्ट 1996 है. दरअसल, संविधान की 5वीं अनुसूचि अनुसूचित अथवा जनजातीय बहुल इलाकों में विशेष प्रशासनिक ढांचे की हिमायती है. साल 1992 में संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था आई लेकिन विशेष प्रशासनिक ढांचे की वजह से इसे अनुसूचित क्षेत्रों में सीधे लागू नहीं किया जा सकता था.
झारखंड के संदर्भ में इसे ऐसे समझ सकते हैं कि आदिवासियों का अपना स्थानीय प्रशासन है जिसे मांझी, मुंडा, मानकी जैसे समाज के मुखिया नियंत्रित करते हैं. तो इसलिए पेसा कानून लाया गया ताकि पंचायती राज व्यवस्था को आदिवासी इलाकों की खासियत के हिसाब से ढाल कर लागू किया जा सके.
पेसा में ग्राम सभा की सर्वोच्च निर्णायक संस्था
पेसा कानून के तहत आदिवासी बहुल इलाकों में ग्राम सभा को ही सर्वोच्च निर्णायक संस्था माना जाता है. गांवों में कोई भी विकास योजना, विकास कार्य अथवा वहां के संसाधनों का इस्तेमाल ग्राम सभा की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता. स्थानीय संसाधन मसलन, वन उत्पाद, भूमि और खनिज पर ग्राम सभा का सर्वाधिकार होगा और उसकी बिना अनुमति के इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
पेसा कानून के तहत आदिवासी रीति-रिवाजों को भी मान्यता दी जा जाती है ताकि आदिवासियों की संस्कृति का संरक्षण हो सके.
आदिवासी बहुल इलाके में खनन, शराब की बिक्री और बाजार पर भी पूरा नियंत्रण ग्राम सभा का होगा. भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरूरी होगी. पेसा कानून के जरिये सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है.
झारखंड में क्यों लागू नहीं हो पा रहा है पेसा कानून
झारखंड में पेसा कानून को लेकर विभिन्न आदिवासी संगठनों की अपनी-अपनी चिंता है. कुछ आदिवासी संगठनों का मानना है कि पेसा कानून को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है. आखिर में पंचायतों को ही समूचा अधिकार दिया जा रहा है. इन्हीं आपत्तियों की वजह से ही पेसा कानून लागू नहीं किया जा सका है.
सरकार ने 10 जून तक आपत्तियां मांगी है.
पिछले दिनों रांची में पेसा पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें विभागीय मंत्री दीपिका पांडेय सिंह के अलावा राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री दीपक बिरुआ, कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की और स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन शामिल हुये.
सबने कहा कि पेसा कानून लागू करने से पहले समाज के अंतिम व्यक्ति तक से राय ली जायेगी. विभाग लोगों तक पहुंचेगा.
झारखंड में 26.2 फीसदी आदिवासी आबादी रहती है
झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड की कुल जनसंख्या 3.29 करोड़ है जिसमें 86.45 लाख आदिवासी हैं.
आदिवासी, झारखंड की कुल आबादी का 26.2 फीसदी हैं.
झारखंड की प्रमुख जनजातियों में संताल, मुंडा, हो, खड़िया, उरांव, सौरेया पहाड़िया, बिरहोर और असुर है. इनमें, असुर, बिरहोर और माल पहाड़िया जैसे समुदाय आदिम जनजातीय समुदाय के अंतर्गत आते हैं.
इतनी बड़ी आबादी के सांस्कृतिक, रहवाश और भाषायी संरक्षण के लिए पेसा कानून जरूरी है. पेसा कानून इन आदिवासियों के अस्तित्व से जुड़ा मसला है.
आज झारखंड में देशभर का 45 फीसदी खनिज संसाधन है. यहां से यूरेनियम, बॉक्साइट, अभ्रक, कोयला, लोहा, तांबा और सोना का खनन होता है लेकिन इन आदिवासी बहुल इलाकों में आदिवासियों की हालत खराब है.
झारखंड के जादूगोड़ा में यूरेनियम के खनन से निकलने वाले रेडिएशन के दुष्प्रभाव से लोग कैंसर, टीबी और त्वचा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं. महिलाओं का अकारण गर्भपात हो जाता है. बच्चे दिव्यांग पैदा होते हैं. ऐसे में यदि प्रभावी ढंग से पेसा कानून लागू होगा तो आदिवासी खनन एरिया में अपने हित के लिए काम कर पायेंगे.
उम्मीद है कि झारखंड की मौजूदा सरकार आदिवासी हित में सही कदम उठाते हुए जल्दी ही प्रभावी ढंग से पेसा कानून लागू करेगी.